भण्‍डाफोड़ू के पुराने लेख...5

जन गणमन किसके लिए लिखा गया था ?
अक्सर लोग यह सिद्ध करने में लगे रहते हैं की राष्ट्रगीत ईश्वर की स्तुति में लिखा गया था न की सम्राट की स्तुति में ,परन्तु सत्य यह कि
जन गण मन= गीत जार्ज पंचम के स्तुतिगान के रूप में लिखा गया। गुरुदेव स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि सम्राट के आगमन के अवसर पर एक सरकारी अधिकारी ने उनसे सम्राट की प्रशंसा में एक गीत लिखने को कहा था। उन्होंने ऐसा गीत लिखने से इनकार नहीं किया था। अब आगे का कथाक्रम देखें-यह गीत 1911 में लिखा गया। यह वही वर्ष था, जिस वर्ष जार्ज पंचम अपनी महारानी के साथ भारत आए और यहां पर उनके राज्याभिषेक का दरबार सजा। यह भारत के ब्रिटिश इतिहास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। ठाकुर रवीन्द्रनाथ ने 27 दिसम्बर 1911 के कांग्रेस की महासभा में पहली बार यह गीत प्रस्तुत किया। अधिवेशन का यह दूसरा दिन था जो सम्राट के अभिनंदन के लिए समर्पित था। इस दिन का केवल एक एजेंडा (कार्यक्रम) था सम्राट के सम्मान में प्रस्ताव पारित करना। उसी दिन रवीन्द्रनाथ ने यह बंगला गीत प्रस्तुत किया। उस दिन सम्राट के सम्मान में एक हिन्दी गीत भी प्रस्तुत किया गया, जिसे रामभुज चौधरी द्वारा गाया गया। लेकिन अखबारों में ठाकुर के अभिनंदन गीत की ही चर्चा रही।28 दिसम्बर के स्टेट्समन में खबर छपी 'बंगला कवि बाबू रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सम्राट के स्वागत में विशेष रूप से रचित अपना गीत प्रस्तुत किया (द बंगाली पोयट बाबू रवींद्रनाथ टैगोर सैंग ए सांग कंपोज्ड बाई हिम स्पेशली टु वेलकम द इम्परर)। इसी तरह 'इंग्लिश मैन समाचार पत्र ने लिखा - कांग्रेस की कार्रवाई बाबू रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा प्रस्तुत गीत के साथ शुरू हुई जिसे उन्होंने सम्राट के सम्मान में विशेष रूप से लिखा है। (द प्रोसीडिंग बिगैन विद द सिंगिंग बाई बाबू रवीन्द्रनाथ टैगोर ऑफ ए सांग स्पेशली कम्पोज्ड बाई हिम इन आनर ऑफ द इम्परर)। एक और अंग्रेजी दैनिक 'इंडियन ने लिखा, 'बुधवार 27 दिसंबर 1911 को जब राष्ट्रीय कोंग्रेस की कार्रवाई शुरू हुई तो सम्राट के स्वागत में एक बंगाली गीत गाया गया। सम्राट और साम्राज्ञी का स्वागत करते हुए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव भी पारित किया गया (व्हेन द प्रोसीडिंग ऑफ द नेशनल कांग्रेस बिगैन आन द वेडनेसडे 27थ डिसेम्बर 1911, ए बेंगाली सांग इन वेलकम ऑफ द इम्परर वाज संग ए रिजोल्यूशन वेलकमिंग द इम्परर एंड इम्प्रेस वाज आल्सो इडाप्टेड एनानिमसली)।वास्तव में 1911 की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अंग्रेज सरकार के प्रति वफादार भारतीयों का ही संगठन था। इसिलए यदि उस समय कांग्रेस ने सम्राट के अभिनंदन में प्रस्ताव पारित किया अथवा रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उनकी प्रशंसा में गीत गाया तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। आश्चर्य की बात तो यह है कि देश जब स्वतंत्र हुआ तो इस अंग्रेज महाप्रभु की प्रशस्ति में लिखे हुए गीत को इस स्वतंत्र राष्ट्र का प्रतीक गीत बना दिया 1911 के बाद यह गीत बहुत दिनों तक ब्रह्म समाज की पत्रिका 'तत्वबोध प्रकाशिका के पन्नों में ही पड़ा रहा। टैगोर स्वयं इस पत्रिका के संपादक थे। =गीतांजलि=-जिसे नोबेल पुरस्कार मिला- में भी यह गीत शामिल किया गया, लेकिन स्वातंत्र्य आंदोलन या देश के जागरण अभियान में कहीं भूलकर भी किसी ने इसे याद नहीं किया। यदि यह देश गीत होता, तो इसकी इस तरह उपेक्षा नहीं हो सकती थी। यदि हम इसे थोड़ी देर के लिए ईश प्रार्थना ही मान लें, तो भी भारत जैसे सेकुलर देश का राष्ट्र गीत बनने लायक यह गीत नहीं था। अब बेहतर यह है कि स्वयं इस गीत की समीक्षा कर ली जाए। सारी टिप्पणियों को दरकिनार करके पाठक स्वयं अपने विवेक से यह निर्णय ले सकते हैं कि यह गीत किसके लिए लिखा गया। पांच पदों का यह पूरा गीत निम्रवत है-(1) जन-गण-मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता । पंजाब सिंधु गुजरात मराठा द्राविड उत्कल बंगा। विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंगा । तव शुभ नाम जागे, तव शुभ आशिश मांगे. गाहे तव जय गाथा। जन गण, मंगल दायक जय हे, भारत भाग्य विधाता। जय हे, जय हे, जय हे. जय, जय, जय, जय हे ।(2)अहरह तव आह्वान प्रचारित सुनि तव उदार वाणी . हिंदू बौद्ध सिख जैन पारसिक ,मुसलमान , क्रिस्तानी । पूरब, पश्चिम आसे , तव सिंहासन पासे। प्रेम हार हवे गाथा । जन -गण, ऐक्य विधायक जय हे , भारत भाग्य विधाता । जय हे , जय हे, जय हे. जय, जय, जय, जय हे ।(3)पतन अभ्युदय बंधुर पन्था ,युग युग धावित यात्री । हे ! चिर सारथि तव रथ चक्रे मुखरित पथ दिन रात्री . दारुण बिप्लव मांझे , तव शंखध्वनि बाजे ,संकट दु:ख त्राता । जन गण पथ परिचायक जय हे। भारत भाग्य विधाता । जय हे, जय हे, जय हे. जय, जय, जय, जय हे।(4)घोर तिमिर घन निबिण निशीथे पीड़ित , मूर्छित देसे । छिलो तव अविचल मंगल नत नयने अनिमेशे। दुह्स्वपने आतंके रक्षा करिले अंके। स्नेह मई तुमि माता । जन गण दु:ख त्रायक जय हे ,भारत भाग्य विधाता । जय हे, जय हे, जय हे।जय , जय , जय , जय हे (5)रात्रि प्रभावित उदिल रविच्छवि पूर्व उदय गिरि भाले । गाहे विहंगम पुन्य समीरण नव जीवन रस ढाले । तव करुणारुण रागे, निद्रित भारत जागे । जय , जय, जय हे जय राजेश्वर भारत भाग्य विधाता । जय हे, जय हे, जय हे।जय, जय, जय, जय हे।अब कांग्रेस के अधिवेशन का जो दिन सम्राट के अभिनन्दन के लिए नियत हो उस दिन की कार्रवाई की शुरुआत सम्राट की प्रशंसा में लिखित गीत से भिन्न किसी दूसरे गीत से कैसे हो सकती है। यहां बहुत साफ ढंग से प्रकट है कि यह 'भारत भाग्य विधाता कौन है। गीत रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसा व्यक्ति लिख रहा हो, तो वह सस्ते कवियों की तरह प्रत्यक्ष प्रशंसापरक नहीं हो सकता। उसमें कलात्मक अर्थछटा होनी ही चाहिए, लेकिन पूरा गीत अपनी कहानी स्वयं कहने में समर्थ है। यदि पूरी कविता के प्रथम चार पदों में कोई भ्रम रह भी जाता हो, तो वह अंतिम पद में दूर हो जाता है। 1911 के दिसंबर महीने में सम्राट के अभिषेकोत्सव के अतिरिक्त ऐसा कुछ भी घटित नहीं हुआ था, जिसकी अभिशंसा में कवि कहता 'अब रात बीत गई है, पूर्व में प्रभात का सूर्य उदित हो रहा है, चिडिय़ा गा रही है और पून्य समीरण प्रवाहित हो रहा है और नया जीवन रस ढल रहा है। देश में उस समय ऐसा क्या हो गया था कि यह कवि हर्षातिरेक में प्रकृति का उत्सव गान करने लगा। अंतिम पंक्ति पूरा रहस्य खोल देती है। 'जय, जय, जय हे जय राजेश्वर का राजेश्वर शब्द शुद्ध रूप से 'इम्परर के लिए ही आया। इसमें शायद ही कोई संदेह करने की धृष्टïता करे।कैसी विडम्बना है कि यह देश मातृभूमि की वंदना बर्दाश्त नहीं कर सकता, किन्तु वह उस सम्राट की प्रशस्ति को अपना राष्टï्रगान बना सकता है, जिसने उसे गुलामी के जुए में कस रखा था। इस देश को इसमें कोई आश्चर्य नहीं। जो देश, स्वतंत्रता प्राप्ति के अगले ही क्षण, ब्रिटिश क्राउन के उसी प्रतिनिधि को अपना सर्वोच्च शासक (गवर्नर जनरल) बना सकता है, अब हमें खुद फैसला करना चाहिए कि वास्तविकता क्या है.



मिस्र के जामा ए-अज़हर ने इस्लामी शिक्षा में संशोधन किया
पाकिस्तान में लाहौर से प्रकाशित अगस्त २००२ के मासिक तरजुमानुल कुरान में एक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें इतनी सनसनीपूर्ण जानकारी है कि सामान्य नागरिक उस पर विश्वास भी नहीं कर सकता है । लेकिन वह सब कुछ यथार्थ है । इतना यथार्थ है कि यदि दुनिया से आतंकवाद समाप्त करना है तो उसे आज नहीं तो कल वही सब कुछ करना पड़ेगा जो पिछले दिनों इजिप्ट ने किया है । इजिप्ट का प्राचीन नाम मिस्र है । न केवल अपने पिरामिडों के लिए बल्कि विश्व में इस्लामी कला और साहित्य के लिये भी यह देश जग-विखयात रहा है । इस्लामी साहित्य और संस्कृति का यहां सबसे बड़ा विश्वविद्याल है जिसे ‘जामेआ अजहर' कहा जाता है । इस्लामी साहित्य और इस्लाम संबंधि शिक्षण के मामले में इससे बढ़-चढ़कर कोई संस्था नहीं है लेकिन पिछले दिनों इजिप्ट सरकार ने इस विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय की स्वायत्तता समाप्त कर दी और इसे इजिप्ट सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत अधिग्रहण कर लिया । विश्वविद्यालय की अनेंक पुस्तकें अभ्यासक्रम से निकाल दीं और अनेक अभ्यासक्रम की पुस्तकों में से ऐसे उद्धरण विवरण और घटनाओं को निरस्त कर दिया जो यहूदी और ईसाई विरुद्ध थे । यह सब कुछ इजिप्ट से राजी खुशी नहीं कर दिया बल्कि इस्लामी आतंकवाद को समाप्त कराने के लिए अमेरिका और इजरायल ने करवाया है ।
अमेरिका तो आतंकवाद के विरुद्ध उस समय सक्रिय हुआ जब ११ सितम्बर २००२ को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर ओसामा बिन लादेन ने हमला किया लेक़िन इजरायल तो अपने जन्म से ही इस अभिशाप से पीड़ित है । १९७३ में अरब इजरायल युद्ध में हार के पश्चात इजिप्ट अरब लीग के देशो से अलग हो गया और उसने इजरायल से केम्प डेविड नामक स्थान पर संधि कर ली । दुनिया के सभी बुद्धिजीवी भली प्रकार जानते हैं कि हथियारों से आतंकवाद कुछ समय के लिए थम तो सकता है लेकिन समाप्त नहीं हो सकता । उसे समाप्त करने के लिए मानसिकता बदलनी पड़ेगी । इसलिए इस्लामी शिक्षा का कुछ भाग जो आतंकवाद का समर्थन करता है उसको बदलना अनिवार्य है । अभ्यासक्रम की पुस्तकों में से वे अंश निकाल देना अनिवार्य है जो शिक्षा प्राप्त करने वाले की मानसिकता को आतंकवादी बनाने का काम करते है ।
राष्ट्रपति के आदेश पर हुआ संशोधन २५ अगस्त १९८१ को इजरायली प्रधानमंत्री बेगिन इजिप्ट की यात्रा पर गए थे । तब बेगिन ने अनवर सादात को सम्बोधित करते करते हुए कहा था । ‘मैं आपकी इस बात पर किस तरह से विश्वास कर लुं कि आप वास्तव में हमारे साथ मित्रता करना चाहते हैं । आपके यहां विद्यार्थीयों को अब भी कुरान की आयतों की शिक्षा दी जाती है कि इजरायल में से जिन लोगो ने कुफ्र का रस्ता अपनाया है उन पर दाउद और मरयम के पुत्र ईसा की जबान से लानत (ईश निंदा) की गई ।' राष्टर्‌पति सादात ने अपने शिक्षा मंत्री को बुलाया और आदेश दिया कि इजिप्ट की शिक्षा संस्थाओं में पढ़ाई जाने वाली ऐसी सभी आयतों को अभ्यासक्रम से खारिज कर दिया जाए जिनमें यहूदियों की शत्रुता का विवरण हो ।
सुधार प्रारम्भ हुआ
सुधार के नाम पर इजरायल और अमेंरिकी इच्छाओं को पूर्ण करने की यात्रा अब भी जारी है । केवल इजिप्ट ही नहीं बल्कि मोरक्को से मलेशिया तक अनेक देशो में यह कार्य हो रहा है । ११ सितम्बर २००१ के बाद जिस पहलू पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है वह शिक्षा है । इस बात को खुल्लमखुल्ला कहा जा रहा है कि कई मुस्लिम देशो में चलने वाले मदरसों के कारण आतंकवाद को खाद पानी मिल रहा है। पाकिस्तान के मदरसों से तालिबान और उनके समर्थक जन्म लेतें हैं, जब कि सउदी अरब और यमन के मदरसों से अलकायदा और उनके सहायक । इन सुधारों के लिए इन देशो को १०० मिलियम डालर की त्वरित सहायता दी गई हैं । पाकिस्तान के शिक्षा क्षेत्र में किय प्रकार के परिवर्तन होने चाहिएँ इसका अनुमान अन्य मुस्लिम देश और विशेषतया इजिप्ट से किया जा सकता है । पाकिस्तान और अन्य देशों में जो संशोधन किये जा रहें हैं वे इजिप्ट में १९७९ से किये जा रहे हैं । इस संदर्भ में कुरान की जिन आयतों और हदीसों को अभ्यासक्रम से निकाला गया है वे जिहाद, यहूदियों की मुस्लिम दुश्मनी, काफिरों से प्रेम और मैत्री का इनकार तथा पर्दे से सम्बन्धित हैं । इसके अतिरिक्त वे आयतें और शिक्षा भी अभ्यासक्रम से निकाल दी गई हैं जिनमें आखिरत के भय (दुनिया समाप्त होने के पश्चात के हिसाब किताब का डर) तथा बुरे काम करने के फलस्वरुप दिये जाने वाले दंड की चर्चा है ।
सरकार के नियंत्रण में लिया विश्वविद्यालय
तेलअबीब विश्वविद्यालय में उन दिनों एक परिसंवाद आयोजित किया गया जिसमें इजिप्ट के प्रधानमंत्री मुस्तफा खलील और बुतरस घाली भी शामिल हुए थे । इजरायल से सम्बन्ध स्थापित करने में कुरानी प्रभव की रूकावटों का एक सर्वेक्षण विषय पर हुए इस परिसंवाद में इजरायल के प्रधानमंत्री ने इजिप्ट सरकार से मांग की है कि कुरान की शिक्षा देने वाले केन्द्र बंद किये जाएँ । और मस्जिदों को सरकार के अधिकार में ले लिया जाए । इस नीति के द्वारा विश्व की सबसे विख्यात यूनिवर्सिटी जामेआ अल अजहर की सरकार के अधीनस्थ कर लिया गया ।
शिक्षा क्षेत्र में व्यापक सुधार
अजहर में शिक्षा की अवधि कम कर दी गई । भिन्न-भिन्न धर्मों के दर्शन (फिकाह) को पढ़ाने से इन्कार कर दिया । इजिप्ट से बाहर के लोगों को प्रवेश देना बंद कर दिया गया । अजहर में प्रवेश के लिए आयु बढ़ा दी गई । कुरान की शिक्षा को सीमित कर दिया गया । इस्लाम के नाम पर भिन्न-भिन्न संगठनों और संस्थओं के अर्न्तगत मदरसों की स्थापना की आज्ञा नहीं होनी चाहिए क्योंकि इन संस्थाओं में विद्यार्थी और शिक्षक का चुनाव केवल धार्मिक आधारों पर होता है । इन परिवर्तनों और शिक्षा नीति में जो बदलाव आया उसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं ।
कुरान में संशोधन
पवित्र कुरान में सुराए नूर की यह आयत अभ्यासक्रम में से निकाल दी गई जिसमें कहा गया है कि १. ‘ए नबी मूमिन औरतों से कह दो कि वे अपनी नजरें बचाकर रखें और अपनी शर्मगाहों (गुप्तांगों) की रक्षा करें' इसी प्रकार सूराय मुजादिला की इस आयत कों भी अभ्यासक्रम से निकाल दिया गया है जिसमें कहा गया है
२. ‘कि तुम कभी यह न पाओगे कि जो लोग अल्लाह और आखिरत (कयामत तथा प्रलय) पर ईमान रखने वाले हैं उन लोगों से प्रेम करतें हों जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल (पैगम्बर) का विरोध किया है ।' सम्पूर्ण पाठ्यक्रम में से वह हर बात निकालने की चेष्ठा की गई है जिसमें विद्यार्थी के मानस में अपने बनाने वाले, दीन (धर्म का स्थयी भाग) अथवा दीन वालों का स्थन उजागर हो । यह प्रसिद्ध हदीस भी पाठ्यक्रम से निकाल दी गई है-
३. ‘तुम में से अच्छा वह है जो कुरान सीखे और दूसरों को उसकी शिक्षा दें ।'
यह हदीस भी निकाल दी गई है
४. ‘मिसवाक (एक प्रकार की खुशबूदार लड़की की दातुन) करो कि करो इससे मुहं साफ होता है ।'
इसे भी कोर्स की पुस्तकों में से निरस्त कर दिया गया है ।
५. जब किसी के पास से गुजरता हूं तो अस्सलामों अलकुम कहता हूं । उसे संशोधित करते हुए यूं लिखा गया है कि जब मैं किसी के पास से गुजरता हूं तो उन्हें आदाब बजा लाता हूं
६. सूर्य के सम्बन्ध में एक वाक्य था सूरज से हमे नमाज के समय का निर्धारित करने में सहायता मिलती है । इस वाक्य को भी पाठ्यक्रम में से निकाल दिया गया । पाठ्यपुस्तकों में से बच्चों के लिये वे कविताएँ भी निकाल दी गई जिसमें इस्लाम की शिक्षा का प्रचार होता था ।
७.इंटरमिडिएट के अभ्यासक्रम से हजरते उमर की जीवनी सम्बन्धी पुस्तक को यह कहकर कम कर दिया गया कि इसके लिए बजट का प्रावधान नहीं है ।
८. अरबी भाषा सिखाने के लिए हदीसों एवं काव्यों पर आधारित जो पुस्तकें थीं, उनके स्थान पर सचित्र पुस्तकों का समावेश कर दिया है जो यौन सम्बन्धी शिक्षा देती हैं ।
९. इजिन्ट के इतिहास में उन लाड़ाइयों को अत्यन्त मर्यादित रुप से बतलाया गया है जो भूतकाल में इजरायल और इजिप्ट के बीच लड़ी गई थीं । वहां भूगोल की पुस्तकों में पेलेस्टाइन का नाम नहीं है, उसके स्थान पर इजरायल लिखा हुआ है । इजरायल और इजिप्ट की मित्रता के गीत गाए गए हैं । केम्प डेविड समझौते की बड़ी प्रशंसा की गई है । जिन देशों ने इन समझौते का विरोध किया था उनके लिए लिखा गया है कि वे अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को समझने में असफल रहे । सऊदी अरब की शिक्षा व्यवस्था को तो इस तेजी से आलोचना का निशाना बनाया जा रहा है कि अमेरिकी समाचार-पत्र एवं बुद्धिजीवियों के अतिरिक्त अमेरिकी कांग्रेस में भी इस पर चर्चा हो रही है । आतंकवाद की जड़ पर प्रहार चर्चा में यह स्वर बुलंद हो रहा है कि आतंकवाद के विरूद्ध लड़ाई केवल अफगानिस्तान पर हमलें से नहीं जीती जा सकती । आतंकवाद की असली जड़े सऊदी अरब और उसकी शिक्षण पद्धति में है । १२ दिसम्बर २००१ के न्यूयार्क टाइम्स में थामस फ्राइड मेन लिखता है कि धर्मिक मदरसे और जमातें आतंकवाद के गढ़ हैं । यहीं से दहशतवादियों के नेता पैदा हुए हैं । आतंकवाद के इन स्रोतों को नष्ट कर देने की आवश्यकता है । वह लिखता है कि यही शिक्षा यहूदी और ईसाइयों के विरूद्ध घृणा फैलाती है ।
शिक्षा का राष्ट्रीयकरण
१२ जुलाई २००२ को यमन से जानकारी मिली है कि शिक्षा में समानता और एकरुपता के नाम पर यमन सरकार ने सभी निजी शिक्षण संस्थाओं का राष्टरीयकरण करने की प्राक्रिया प्ररम्भ कर दी है । सरकार के इस निर्णय का वहां घोर विरोध हुआ लेकिन यमन की सरकार ने इसकी तनिक भी चिंता नहीं की । मोरक्को में पुलिस ने उन १६ उलेमाओं (इस्लामी विद्धान) को गिरफ्‌तार कर लिया है जो यहूदी और ईसाइयों के विरूद्ध घृणा फैलाने का काम कर रहे थे । तरजुमानुल कुरान पत्रिका के रपट में जो कुछ कहा गया है उसे भारतीय मुसलमानों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो अनुभव होगा कि भारत में मुस्लिम और इस्लाम कितने सुरक्षित हैं ? यहां न तो कोई परिवर्तन के लिये दबाव है और न ही सरकार किसी धर्म के मामले में हस्तक्षेप करती है । भारत में कुरान और अन्य इस्लामी पुस्तकें बड़ें पैमाने पर छपती हैं जिनका निर्यात इस्लामी देशों के लिए होता है । सरकार ने आज तक न तो अभ्यासक्रम को बदलने के लिए कोई परिपत्र निकाला है और न ही मदरसों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय किया है । इस्लाम तो क्या किसी भी धर्म को अपमान करने वाले को कड़ी सजा दी जाती है । चांदमल चोपड़ा ने कुरान के विरूद्ध कोलकाता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसे न्यायालय ने निरस्त कर दिया और कहा कि किसी भी कोर्ट को धार्मिक पुस्तकों के विषय में कोई संच्चोधन करने अथवा रद्योबदल (परिवर्तन) करने का अधिकार नहीं हो सकता । अमेरिका में समाचार-पत्र एवं बुद्धिजीवियों ने आतंकवाद के लिये सऊदी अरब को उत्तरदायी ठहराते हुए कहा कि आतंकवाद को समाप्त करने के लिए मक्का पर एटम बम गिरा दिया जाए । इस प्रकार की बात आज तक भारत में किसी ने नहीं कही । इसलिए जो वामपंथी भारत में शिक्षा का भगवाकरण का आरोप लगाते हैं, भारतीय उच्चतम न्यायालय ने तो उनको निरुत्तर कर दिया, अब उन्हें चाहिए कि वे अपनी मुस्लिम भक्ति के गीत अमेरिका और इजरायल में जाकर गाएँ ताकि उन्हें आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाए ।



फतवा का फटका और खाप की थाप क्या औरतें ही सहेंगी ?
देश में जिस गति से शिक्षा का प्रसार और विज्ञान की प्रगति हो रही है ,उसे देख कर लगता था की लोगों की सोच में बदलाव जरूर आयेगा.लोगों में संकीर्णता ,और हठधर्मी में कमी आयेगी.लोग हरेक निर्णय तर्कपूर्ण ढंग से करेंगे.
लेकिन हमारे देश में इसका उलटा हो रहा है.कुछ लोग अपने निहित स्वार्थों के कारण ,या अपनी कूपमंडूक विचारधारा के कारण देश और अपने समुदाय के लोगों को पीछे की तरफ धकेल रहे हैं इसमे हिन्दू और मुसलमान दौनों शामिल हैं.जब भी महिलाओं पर कोई पाबंदी लगाने की बात हो या उनके अधिकारों रोक लगाने की बात हो इन दौनों समुदायों के पुरुषों के विचार एक जैसे होते हैं.इन अपनी अपनी जात या कौम के ठेकेदारों का निशाना सिर्फ औरतें ही होती हैं.
मौलवी मुल्ला तो इसी फिराक में लगे रहते हैं की औरतों पर नयी नयीपाबंदियां उन पर कैसे लगाए. उनके पैरों में नयी बेडीकैसे डालें .
इसके लिए वह नए नए फतवे जारी करते है,जिन में न तो कोई तर्क है और न दलील.
कुछ फतवे देखिये
१-फिल्म में काम करना और फिल्म देखना हराम है.
२-सरकारी या प्राइवेट संस्था में काम करना हराम है.
३-बीमा कराना ,बीमा कम्पनी में काम करना हराम है.
४-ब्यूटी पार्लर में जाना हराम है.
५-लिपस्टिक लगाना ,बालों में डाई लगाना हराम है.
६-जो लड़कियां सरकारी इदारों में अपना करियर बना रही हैं उन्हें ऊपर इसका जवाब देना होगा.मौलाना अब्दुल इरफ़ान
इनकी यह दलील है की ऐसा काम करने से लड़कियां बिगड़ जायेंगी.
मेरा कहना है की कभी मौलाना ने लड़कों को सुधारने की कोशिश की .कि वे लड़कियों का सम्मान करें .क्या मौलाना की नज़र में सारे लडके शरीफजादे हैं.
एक और बात सोचने की है,सारे फतवे मर्द मौलवी ही क्यों देते हैं.देश में लाखों ऎसी मुस्लिम महिलायें होंगी जो कुरआन ,हदीस,और फिक्का का ज्ञान एक मौलवी से जादा रखती हैं .जहां तक मज़हबी इल्म का सवाल है,अल्लाह के सामने औरत मर्द बराबर हैं फिर फतवे के बारे में औरतों की राय क्यों नही ली जाती है.क्या अरतें इस्लाम का पूरा इल्म होने बावजूद जन्नत में नहीं जाएँ गी .क्या उनसे अलग सवाल होगा.
जब अह जन्नत में किसी मसले पर जवाब दे सकती हैं ,तो यहाँ क्यों नही,
आप लोग इसके बारे में मुझे बताइये
अगर इन मौलवियों का बस चले तो यह औरतों की सांस लेना दूभर कर देंगे कुछ समय पाहिले खबर आयी थी कि फतवे भी बिकते हैं
इसकी जांच होनी चाहिए.आखिर इसके पीछे कौन है.
ये वफ़ा की इब्तिदा है ,कि क़ज़ा पे ख़त्म करदी
अभी और क्या न करते अगर इख्तियार होता .
आज हमें यह सोचना होगा कि देश में कोई सरकार है या नहीं .कुछ समय पाहिले मनोज बबली काण्ड सुर्ख़ियों में रहा था.इनके हत्यारे इतने निडर हो गयी कि अदालत फैसले को चुनौती दे रहे हैं.जिस जज वाणी गोपाल शर्मा ने हत्यारों को सजा दी थी ,जाटखाप उसे धमकी दे रही है.
इन जाटों खाप में भी कोई औरत नहीं है .खाप की इतनी दादागिरी हो गयी है कि एक मुखिया अभयराम ने इतना तक कहदिया कि जो खाप का फैसला नही मानेगा उसे अछूत घोषित कर दिया जाएगा.
खाप के साथ कुछ नेता भी मिल गए और वोट पक्के कर रहे है .और कानून में बदली चाहते है,
जहां तक गोत्र की बात है तो इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, न किस्सी मेडिकल टेस्ट से गोत्र साबित हो सकता है.गोत्रों की बात जादा पुरानी नहीं है.मगर यह बात तय है कि जाट हूणों और कुषाणों के वंशज हैं जो हिन्दू धर्म में घुलमिल गयी हैं.सरकार को इनके दवाब में नहीं आना चाहिए.और लोगों को भी इनका वरोध करना चा चाहिए



आतंकवाद के स्रोत को रोकने की जरूरत है
इस्लामी आतंकवाद की तुलना उस राक्षस से की जा सकती है जिसके प्राण उसके शरीर में न होकर एक तोते में बसते थे। आतंकवाद के प्राण इसकी विचारधारा में बसते है, उन सरदारों और संगठनों में नहीं जिन पर प्रहार कर इसे खत्म करने की कोशिशें हो रही है। यदि ओसामा बिन लादेन या मोहम्मद अफजल को काबू भी कर लिया जाए तो भी आतंक का सिलसिला खत्म होने वाला नहीं है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, अरब, यूरोप और भारत में अनेकानेक आतंकवादी मारे गए है। सैकड़ों जेलों में बंद है। तब यह आतंकवाद खत्म क्यों नहीं हो रहा है? इसलिए कि उसकी प्रेरणा, एक विशिष्ट विचारधारा से लड़ने में संकोच किया जा रहा है। बल्कि उलटे उस विचारधारा को बचाया जाता है। जब भी कोई बड़ा आतंकवादी हमला होता है तब जरूर कहा जाता है कि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता। अजीब है कि अन्य अपराधियों के संबंध में बयान नहीं आता कि उनका कोई मजहब नहीं होता। इसलिए यह बयान स्वयं सच्चाई की चुगली करता है। अभी मुंबई हमले के बाद भी मौलाना मदनी, अभिनेता आमिर खान और कुछेक मुस्लिम हस्तियों ने वही बयान दोहराया। राजनीतिक दल भी ऐसी ही रट लगा रहे हैं।
यदि सच है कि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता तो पिछले आठ वर्ष में दुनिया में हुए लगभग सभी आतंकवादी कारनामों के तार केवल एक देश पाकिस्तान से ही जुड़े क्यों पाए गए? दुनिया भर के आतंकवादी प्रशिक्षण या तैयारी करने वहीं क्यों जाते है, जापान या श्रीलंका क्यों नहीं जाते? यदि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता तो उनमें तरह-तरह के मजहबी विश्वासों को मानने वाले रंगरूट तैयार हो रहे होते। अफगानिस्तान में तालिबान फिर सत्ता पर काबिज होने की तैयारी कर रहे हैं। तालिबान ने ही बिन लादेन को अपना अंतरराष्ट्रीय हेडक्वार्टर बनाने के लिए जमीन दी, जहां से अलकायदा ने दुनिया भर में अनेक आतंकी हमले किए। क्या आमिर खान बताएंगे कि क्यों दुनिया की किसी ईसाई मिशनरी या बौद्ध विद्यालय से एक भी आतंकवादी क्यों नहीं निकला? पाकिस्तान में छह वर्ष पहले मजहबी मामलों के मंत्री महमूद अहमद गाजी ने कहा था कि वहां दस हजार ऐसे मदरसों की पहचान की जा रही है जहां से आतंकवाद के प्रसार का संदेह है। इस एकमात्र तथ्य से स्पष्ट है कि इस्लामी इल्म से आतंकवाद का कितना सीधा संबंध है। तब बार-बार दोहराना कि आतंकवाद को किसी मजहब से नहीं जोड़ना चाहिए, एक आत्मघाती प्रवंचना है। इस्लामी आतंकवादी संगठन, उनके ट्रेनिंग केंद्र और विचारों को उन्हे पनपाने वाली जमीन से काट कर नहीं समझा जा सकता। आज सबसे बड़ी बाधा यह है कि आतंकवाद को वैचारिक, नैतिक, भौतिक समर्थन देने वाले सभी तत्वों से आंख चुराकर लड़ने की बात की जाती है। यह छिपाने के उलटे परिणाम निकले हैं कि इस्लामी आतंकवादी अपने मजहबी विश्वासों के तहत ही सब कुछ कर रहे है। चाहे आतंकवादी कैंपों की पाठ्य-सामग्री हो या आतंकी संगठनों के दस्तावेज या ओसामा जैसे सरदारों के उकसावे, सब में समान सूत्र जिहादी विश्वास ही है। नहीं तो तालिबान या अलकायदा के वीभत्स से वीभत्स कारनामों पर मुस्लिम देशों में मौन समर्थन क्यों छाया रहता है? यदि आतंकवादी इस्लाम का दुरुपयोग कर रहे है तो बात-बात में फतवे जारी करने वाले उलेमा ने किसी आतंकी संगठन या सरदार के खिलाफ कभी कोई फतवा क्यों जारी नहीं किया? सजा क्यों नहीं सुनाई?
आतंकियों की असली ताकत मजहबी विचारधारा पर उनका आंख मूंदकर विश्वास करना है। वे जैसा सोचते है वैसा कहते भी है। सेकुलरवादियों की तरह सोचने और कहने में दोहरापन नहीं दिखाते। दोहरापन तो उनमें है जो आतंकी घोषणाओं की अनदेखी करते है। जिहादी मानसिकता तब तक समाप्त नहीं होगी जब तक अपने विचारों पर उसका भरोसा अडिग रहेगा। यह विश्वास तभी हिलेगा जब उसके बुनियादी मजहबी अंधविश्वासों को खुलकर चुनौती दी जाएगी। भावनाओं के नाम पर सकुचाने से उलटे विध्वंस का पैमाना बढ़ता जाएगा। मुंबई का हमला इसका उदाहरण है। इस असुविधाजनक सच्चाई का सामना करने से बचकर हम अगले और बड़े हमलों को निमंत्रण दे रहे है। अत: जरूरी है कि आतंकवादियों के वैचारिक सूत्रधारों के बयानों को गंभीरता से लिया जाए। यदि कोई उन्मादी कहता है कि कश्मीर तो जिहाद का दरवाजा भर है, हमारे निशाने पर तो पूरा हिंदुस्तान है, अथवा हम एक और महमूद गजनवी का इंतजार कर रहे है तो ऐसी स्पष्ट घोषणाओं की उपेक्षा कर, इसके प्रेरक विचारों पर चुप्पी रखना आत्मप्रवंचना है। बार-बार एक नकली बात कहकर असली लड़ाई से बचने की कोशिश बुद्धिमानी नहीं है।



इस्लाम को कट्टर पंथियों के चंगुल से छुड़वाओ
लगभग एक हफ्ते से मैं इस्लाम के ऊपर लिख रहा हूँ .चूंकि मेरा काम आलोचना है,इसलिए हो सकता है की मेरी भाषा में कुछ तल्खी आगयी हो.लेकिन जब कोई व्यक्ति अपनी सच्ची बात जोरदार ढंग से पेश करता है ,तो भाषा में सख्ती आना स्वाभाविक है.
एक शायर ने कहा है -
यूँही नहीं ये मेरी जुबां पर छाले हैं ,
आग बला की होती है सच्चाई में
वास्तव में मेरा विरोध इस्लाम के असहिष्णु ,उग्र ,कट्टर और आतंकवादी विचारों से है.और उन लोगों से जो ऐसे विचारों को हवा देते हैं.चाहे वह यहाँ के मौलवी -मुल्ले हों या बाहर के देश के लोग हों .यह लोग दोहरी नीति अपनाते है ,दिखाने के लिए मेलजोल,भाईचारा और सुलह की बात करते हैं,लेकिन गुप्त रूप से देशद्रोहियों का समर्थन करते हैं.ऐसे लोगों के बारे में कुरआन में भी कहा गया है
कुरआन -सूरे बकर -२:११.१२
ऐसे लोग उस समय से इस्लाम पर हावी हो गए थे जिस समय मुहम्मद का इंतकाल हुआ था .और आयशा के भाई मुहम्मद बिन अबूबकर ने दूसरे खलीफा उस्मान की ह्त्या की थी .इन्हीं लोगों ने हज़रत अली,और जमां हुसैन को उनके परिवार के ७२ लोगों सहित निर्दयता से ह्त्या की थी .आज इस्लाम पर यही लोग काबिज हैं.इस्लाम में खूँरेजी ,ज़ुल्म ,आतकवाद की शुरुआत तभी से हुई है.अब यह इनकी आदत बन चुका है
आज मुझे अपनी लायब्रेरी में एक किताब हाथ में आयी किताब का नाम है "हमारे हैं हुसैन "किताब इमामिया मिशन लखनऊ से छपी है इसका इशायत नंबर ३५१ है
मैं अपने दोस्त जीशान जैदी का ध्यान चाहूँगा की वे ,इस किताब के पेज १२,१३ १४ को जरूर पढ़ें.
इस किताब में लिखा है जब कर्बला की लड़ाई होए वाली थी ,तो इमाम हुसैन ने बिन साद से यजीद को कहलवाया था की मुझे नहीं चाहिए ,सिर्फ मेरी एक शर्त मान लो ,मैं ईराक छोड़ कर हिदुस्तान जाना चाहता हूँ ,वहां से मुझे मुहब्बत भरी खुश्बू आरही है .
सोचिये उस समय नातो मुसलमान थे न मस्जिद थी . उन दिनों भारत अरब व्यापार होता था.लोग काफिले से सामान ले जाते थे
पंजाब का एक ब्राह्मण रिखब दत्त ,जिसके सात लडके थे,वह पांच लड़कों के साथ ईराक जा रहा था .जब उसे कर्बला की लड़ाई का पता चला ,वह अपने पाँचों लड़कों के साथ इमाम हुसैन की तरफ से यजीद की फ़ौज से लड़कर शहीद हो गए.आज भी रिखब दत्त के वंशजों को हुसैनी ब्राह्मण कहा जाता है .
इन लोगों के बारे में राही मासूम रज़ा ने अपनी कई किताबोंमे लिखा है
आप इस्लाम का सही रूप दिखाएँ
एक और घटना है ,जो मौलाना रूमी ने अपनी मसनवी में लिखी है
एक बार कुछ लोगों ने हजरत अली के घर एक शकर की बोरी भेजी .ह अली ने दखा की बोरी पर एक चींटी इधर उधर घूम रही है.उन्होंने लोगों से कहा लगता यह चींटी यहाँ आने से परेशान हो रही है ,जाओ इसे उसके घर वहीं छोड़ दो जहां से लाये थे
रूमी मसनवी में कहते है
"मी आजार मूरी के दाना कुशश्त
के जां दारदो जां शीरीं खुशाश्त
यानी चींटी को भी न सताओ जो दाना उठा रही है, इसमे भी जानऔर जान सबको प्यारी है
अगर जैदी साहेब इस इस्लाम की बात करें जो मैंने उदाहरण में बताया है.अज का मौजूदा इस्लाम वह नहींहै जो सामने आ रहा है.पाहिले इस्लाम को दहशत गिरदी से आजाद कराओ .वरना हमें काफिर ही रहने दो हमें ऐसा इस्लाम नहीं चाहिए
काफिरम इश्कत मुसलमानी मिरादरकार नीस्त



मुहम्मद अपनी औरतों को नहीं मारते थे ?

पिछले दो तीन लेखों में इस्लाम और मुहम्मद के बारे में गर्मागर्म बहस चल रही है.किसी ने मुहम्मद के बारे में लिख दिया की उन्हों ने अपनी औरतों को नही मारा.और न कुरआन में इस की इजाजत है.जवाब देना जरूरी था इसलिए समय कम होने के बावजूद संक्षिप्त में लिख रहा हूँ
इसा समय मेरे सामने कुरआन ,और सही बुखारी,सही मुस्लिम की किताब मौजूद है.
औरतों को मारने के बारे में कुरआन कहता है की "अगर तुम्हारी औरतें तुम्हारी बात यानी बिस्तर पे आने की बात न मानें ,तो उनको पाहिले तो बिस्तर पर अकेला छोड़ दो,और राज़ी करो,फिर भी न माने तो उन्हें पीटो.
कुरआन-सूरा अन निसा -४/३४
मुहम्मद ने अपनी ९ साल की पत्नी आयेशा को मारा
इब्न बिन अब्दुल्लाह से रवायत है की आयेशा ने कहा "की रसूल ने मुझे छड़ी से मारा .और फिर मेरी छाती पर घूंसे मारे .जिस स से मुझे कई दिनों तक दर्द होता रहा "
सही मुस्लिम -४/२१२७
इल्यास बिन अब्दुल्लाह कहते हैं की कुछ औरते उम्र के पास गयीं ,उस समय नबी भी थे.औरतों ने अपने पति जी जिस्मानी इच्छा पुरी न पाने की शिकायत की थी .नबी ने आदेश दिया की अगर यह औरतें न माने तो उनकी पिटाई करो .
अबू दाउद- हदीस २१४१
एक बार एक औरत मुहम्मद के पास गयी ,और बोली की वह अपने अत्यधिक वासना पूरी नही कर पायी ,इसलिए मेरे पति ने मुझे बेरहमी से मारा मुहामद ने तुरत उस औरत को उसके पति के पास भेज दिया.पति ने उस औरत को खूब मारा.औरत ने इसका कारण पूछा तो नबी ने कहा की औरतों को यह पूछने हक़ नहीं है की उसे क्यों मारा गया
अबू दाउद -२१४२
मुसलमान रसूल की सुन्नत का अनुसरण करते हैं,यानी जैसा नबल ने किया था वही सुन्नत है.और वही शरीयत है.
इससे साफ़ है की जब मुहम्मद खुद अपनी औरतों को मारता था ,ताभ्ही तो वह दूसरों को वैसा ही करने को कहता था
यथा राजा तथा प्रजा.
मेराउन लोगों से अनुरोध है जो बौखलाहट में क्रिसन की तुलना मुहम्मद से करने लग जाते हैं.मुझे खुद उन कहानियों पर विश्वास नहीं है
मेरा निशाना सिर्फ इस्लाम है.
अगला लेख पूरी तय्यारी के साथप्रकाशित .आप सब कृपा करके टिप्पणियाँ जरूर दीजिये



क्या औरतें स्वेच्छा से मुहम्मद के पास शादी का प्रस्ताव रखती थीं?

मैंने अपने कल के लेख में मुस्लिम महिला ब्लोगर्स से कुछ सवाल पूछे थे. उनके कई लोगों ने जवाब दिए.परन्तु उन सब में हमें रोशनी जी का जवाब सबसे महत्वपूर्ण लगा.रोशनी जी ने मुहम्मद को कायनात का सबसे महान व्यक्ति बताया और कहा किऐसे व्यक्ति से हर औरत शादी करना चाहेगी. रोशनी जी ने यह भी कहा कि औरतें खुद मुहम्मद के पास शादी का प्रस्ताव भेजती थी.
हो सकता है कि पहली बात रोशनी जी ने अपनी अकीदत के कारण कह दी हो ,लेकिन बात ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं,मैं चाहता हूँ कि रोशनी जी इन सवालों भी रोशनी डालें तो कृपा होगी.
सब जानते हैं कि मुहम्मद के समय अरब के लोग लुटेरे,अय्याश और अत्याचारी रहे. उस समय औरतें बाजार में बिकती थी. आज भी अरब ,मिस्र की औरतें सेक्स की भूखी रहती है.और आतंकवाद में लगी रहती हैं.हिन्दा नामाकी औरत ने तो अमीर हमजा का सीना चीर कर उसका कलेजा तक चबा लिया था.इसके अलावा उस समय की अरबी औरते अनपढ़ ,अन्धविश्वासी ,और मूर्ख थीं.
खुद मुहम्मद की सारी औरतें अनपढ़ थी ,और अदिकांश विधवा थीं.इसलिए हो सकता है कि वे वासना पूर्ति के लिए ,और अपना पेट भरने के लिए मुहम्मद के पास जाती हों उन्हें डरथा कि कहीं उन्हें भी कोई लूट कर बेच न दे.
अब हम दूसरी बात पर आते हैं ,
अबू बकर की एक नौ साल की बेटी आयशा थी मुहम्मद की पहली औरत खदीजा मर चुकी थी.मुहम्मद ५४ साल का था .तभी उसकी नजर आयेशापर पड़ी.उसने अबू बकर को खलीफा बनाने का लालच दिया ,और छोटीसी आयेशा से शादी का दवाब डाला. आयेशा को शादी के बारे में ज्ञान ही नहीं था.मुहमद की दासियाँ आयेशा कु उठाकर मुहम्मद के कमरे में ले गयीं.आयेशा चिलाती रही,रोती उसकी आवाज दवाने के लिए औरतें शोर करती रही .
सही मुस्लिम-किताब८,हदीस-३३०९
बुखारी-खन्द७,हदीस -६५
जब तक मुहम्मद अपनी मन मानी नहीं कर चुका दूउसरी औरतें शोर मचाती रही ,ताकि किसी को पता नहीं चले क्या हो रहा है.
सही मुस्लिम -खंड २ हदीस ३३०९
एकबार मुसलमान मिस्र से एक १७ साल की ईसाई कुंवारी लड़की मारिया किब्तिया को लूट कर और मुहम्मद के हवाले कर दिया.मुहम्मद की नीयत खराब हो गयी .जब वह मारिया के साथ सम्भोग कर रहा था तो उसकी एक औरत हफ्शा ने देख लिया और मुहम्मद ऐसा करने का कारण पूछा.मुहम्मद ने कहा कि यहमैं अल्लाह के आदेश से कर रहा हूँ इसमे अल्लाह ने अनुमति दी है.
कुरआन-सूरा अह्जाब -३३.३७
अल्लाह ने कहा है लूट में पकड़ी गयी औरतोंसे तुम सम्भोग कर सकते हो.यह तुम्हारी संपत्ति हैं
कुरआन-सूरा निसा ४/२३-२४
इसी तरह मुहम्मद ने जिस लडके ज़ैद को बेटा मान कर उसकी शादी अपनी फूफी की लड़की जैनब से करवादी थी.और शादी के लिए सारा सामान भी दिया था.लेकिन मुहम्मद की जैनब पर भी नजर पद गयी जब वह घर में कपडे धो रही थी. मुहम्मद ने ज़ैद को डराया और जैनब से तलाक देने को कहा
कुरआन -सूरा अहजाब ३३.३७
मुहम्मद ने कहा कि यह इसलिए कर रहा हूँ कि अल्लाह चाहता है कि मुझे औरतों की तंगी नहीं रहे चाहे वह चाचा , मामा .फूफू कि बेटी ,या दत्तक पुत्र की पत्नी ही हो
मै रोशनी नी जी से आग्रह करत्त हूँ कि इस पर कुछ जरूर कहें लेकिन पहले कुरान हदीस वगैरह ठीक से पढ़ लें



मुस्लिम महिला ब्लोगर्स से सवाल

पिछले दो हफ़्तों से मैं इस्लामी आतंकवाद पर लगातार लिख रहा था.मेरा मानना है की जबतक आतंकवाद की जड़ पर प्रहार नहीं किया जाएगा कोई लाभ नहीं होगा इसलिए मैं कुरआन और मुहम्मद के बारे में तीन चार लेख लिखे थे.जैसे लेख प्रकाशित हुए मेरे पास तरह तरह की टिप्पणियों की भरमार हो गयी.कुछ लोगों ने मुझे देश की गंगा-जमुनी तहजीब की दुहाई देकर भाईचारा बनाए रखने की अपील की.चूंकि मैं ने भी अरबी फारसी उर्दू के साथ इस्लामी इतिहास का आद्यां किया है.इसलिए मैं जानता हूँ की यह हिन्दू मुस्लिम एकता की बातें कितनी खोखली हैं .मुसलमान अपना स्वभाव नही छोड़ सकते .शेख साड़ी ने कहा है -
गुर्ग जादा हमेशा गुर्ग शवद
गरचे बा आदमी बुजुर्ग शवद
यानी भेड़िये का बच्चा भेड़िया ही होता है, चाहे वह आदमियों के साथ रह कर बुड्ढा हो जाए.
इसके अलावा कुछ मुस्लिम ब्लॉगर ने इस्लाम की महानता जताने के लिए कुछ बजरंग दल और शिव सेना के ऐसे लोगों के फर्जी बयान अपने ब्लॉग से मुझे लिंक किये ,जिसमे इन नए मुसलमानों ने खुदा का शुक्रिया करते कहा की,आज मुझे अक्ल मिल गयी,और में मुसलमान हो गया. वरना में अँधेरे में भटकता रहता.इन लोगों कुछ मौलवियों के सामने यह भी वादा किया वे अब कुरआन और रसूल के बताये रास्ते पर चलेंगे.और गुमराही का रास्ता छोड़ देंगे.इन लोगों से यह भी कहलवाया गया किसिर्फ इस्लाम ही सच्चा धर्म है.
मेरा ऐसे मूर्खों से कहना है कि जिस की बुद्धी पर पत्थर पड़जाते है सिर्फ वही मुसलमान बनाता है.
सूफी फकीर ,जिनका मजार दिल्ली की जामा मस्जिद के सामने है ,एक बार कहा था -
सूए मस्जिद की रवम इम्मा मुसलामा नीस्तम
बुत परस्तम काफिरम अज अहले इमां नीस्तम
यानी मैं मस्जिद क्यों जाऊं ,मैं तो काफिर हो गया,हूँ,और मूर्ति पूजक होगया, मै अब ईमान वाला नहीं रहा.
इसके बाद मैं,उन मुस्लिम महिला ब्लॉगर से एक सवाल पूछना चाहता , जो इस्लाम और मुहम्मद की तारीफों में जमीन आसमान एक कर रहीं हैं,यदि उन्हें भी मुहम्मद जैसा पति मिल जाए जिसकी पाहिले से ही एक दर्जन पत्नियां हों,जो उनके ही बिस्तर पर ,उनके ही सामने कई औरतों और दासिओं से सम्भोग करता हो.और जब वह सम्भोग कर रहा हो तो,खुद अल्लाह एक रेफरी की तरह उसे कुरआन की आयातों के जरिये उसे गाईड करते हों.
धन्य हैं ऐसे नबी और धन्य उनके मानने वाले.
घटिया से घटिया वेश्या भी एक बार में बिस्तर पर एक ही ग्राहक बुलाती है ,और पर्दा डाल देती है .लेकिन मुहम्मद तो नबी है ,अल्लाह ने उनको छूट जो दे रखी है. वे कुछ भी करें. बताइये है किसी मुस्लिम लड़की में इतनी हिम्मत .है तो मेर ब्लॉग में अपनी टिपण्णी जरूर भेजें



मुसलमानों की परेशानी
डाक्टर जकारिया की परेशानी यह है कि वे मुस्लिम अस्मिता की रक्षा के प्रश्न को भारत तक सीमित समझ रहे हौं और उनकी दृष्टि में भारतीय मुस्लिम समाज की मुख्य समस्या यह है कि वह कुल जनसंख्या का केवल १२ प्रतिशत है और विभाजन के कारण कमजोर हो गया है। दूसरा कारण उनकी दृष्टि में हिन्दत्व का उभार है। सत्ता की ताकत से लैस हिन्दत्व मुसलमानों को आर्थिक दृष्टि से उभरने नहीं दे रहा है, उनके प्रति भेदभाव बरत रहा है। किन्त एक अन्य मुस्लिम लेखक एम। युसुफ खान ने व् जकारिया के इस आरोप को निराधार बताते हुए तीन मुस्लिम युवतियों- एक पत्रकार, एक डाक्टर एवं एक उद्योगकर्मी से प्रत्यक्ष वार्तालाप के आधार पर लिखा है कि उनमें से किसी को भी कहीं भेदभाव का सामना नहीं करना पडा और वे अपनी योग्यता के आधार पर लगातार आगे बढ़ रही हौं। (पायनियर, १ जुलाई)डाक्टर जकारिया जानते हुए भी अनजान बन रहे हौं कि मुस्लिम अस्मिता का प्रश्न आज पूरे विश्र्वा के सामने मुह बाये खड़ ा है। इस प्रश्न के तीन चेहरे सामने आते हौं। एक, जिन गैरमुस्लिम देशों के किसी एक क्षेत्र में मुस्लिम बहुसंख्या है, वे क्षेत्र गैरमुस्लिम देश से अलग होने के लिए संघर्ष कर रहे हौं। पुराने यूगोस्लाविया के भीतर से बोस्निया और कोसावो का जन्म भारी खून-खराबे के साथ हुआ। सोवियत रूस के विघटन में से मध्य एशिया में ६ मुस्लिम राज्य प्रगट हुए। मुस्लिमबहुल चेचन्या गैरमुस्लिम रूस से मुक्ति के लिए खूनी जिहाद चला रहा है। फिलिपीन्स का खूनी मुस्लिमबहुल दक्षिणी भाग लम्बे समय से जिहाद में लिप्त है। चीन का सिंक्यांग प्रदेश मुस्लिमबहुल होने के कारण अशांति का गढ़ बना हुआ है। दूर क्या जाएं, अपने देश भारत में ही कश्मीर में क्या हो रहा है? १९९० से वहां के मुस्लिम बहुमत ने निजामे मुस्तफा अर्थात् इस्लामी शासन की स्थापना के लिए सहस्राब्दियों से कश्मीर के मूल हिन्दू निवासियों को बिना किसी उत्तेजना और अपराध के खूनी कत्लओम के द्वारा अपनी मातृभूमि छोड़ ने के लिए विवश कर दिया है और वे आज केन्द्र में हिन्दू सरकारों के होते हुए भी शरणार्थी बनकर भटक रहे हौं। यह एक चेहरा है मुस्लिम अस्मिता का। दूसरा चेहरा है जो मुस्लिम राज्या के भीतर दिखाई दे रहा है। प्रत्येक मुस्लिम देश के भीतर अपनी ही मुस्लिम सरकार के विरुद्ध चरमपंथी मुस्लिम आंदोलन चल रहे हौं- चाहे वह अल्जीरिया हो या मिस्र, चाहे ईरान हो या तुर्की या पाकिस्तान। चरमपंथियों की मांग है कि उनके देश में शरीयत के आधार पर शासन चलाया जाना चाहिए। शरीयत का अर्थ है -कुरान, हदीस और सुन्ना पर आधारित शासन व्यवस्था। इस शासन व्यवस्था का नमूना सउदी अरब में देखने को मिल सकता है या कुछ वर्ष पूर्व अफगानिस्तान के तालिबान शासकों ने बामियान में दो हजार साल से खड़ ी बुद्ध प्रतिमाओं का ध्वंस करके प्रस्तत किया था। उन प्रतिमाओं को तोड़ ने का कोई तात्कालिक कारण न होते हुए भी तालिबान शासकों को उनका विध्वंस आवश्यक लगा, क्याकि शरीयत की दृष्टि से देव प्रतिमाओं का अस्तित्व कुफ्र है और कुफ्र को मिटाना सच्चे इस्लाम का कर्तव्य है। सउदी अरब में अन्य धर्मावलिम्बयों को अपनी धार्मिक श्रद्धाओं और प्रतीकों की सार्वजनिक अभिव्यिक्त की छूट नहीं है और वहां के नागरिकों से शरीयत का कड़ ाई से पालन कराने के लिए मुताबा नामक नैतिक पुलिस की आंखें और डं ड ा हर जगह मौजूद है। शरीयत के प्रति अंधश्रद्धा शरीयत के प्रति इस अंधश्रद्धा ने पूरे विश्र्वा को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम में विभाजित कर दिया है। इसी को शरीयत की भाषा में मोमिन बनाम काफिर या जिम्मी कहा जाता है। इसी विभाजन में से राजनीतिक धरातल पर दारुल हरब और दारुल इस्लाम की अवधारणा पैदा हुई। दारुल हरब को दारुल इस्लाम में परिणत करना प्रत्येक मुसलमान का पवित्र कर्तव्य है। इस प्रयास का ही नाम है जिहाद। जिहादी तीन स्तरों पर काम करता है। एक है स्वयं को सच्चा मुसलमान बनाना अर्थात् शरीयत के सांचे में ढालना। दूसरा है काफिरों को इस्लाम कबूल करने के लिए प्रेरित या विवश करना, तीसरा है काफिरों या जिम्मियों के मजहबी युद्ध लड़ ना, उन्हें इस्लाम के सामने पराजय स्वीकार करने के लिए मजबूर करना। यह विचारधारा कहीं भी मुसलमानों को गैर मुसलमानों के साथ शांति और सौहार्द के साथ जीने नहीं देती। मुस्लिम अस्मिता की रक्षा के लिए उसका मत परिवर्तन या विनाश पुण्य कर्म है। यह जुनून मुस्लिम युवकों में इतना गहरा व्याप्त है कि उसमें से सैकड़ ों की संख्या में फिदायीन या आत्मघाती युवक पैदा हो रहे हौं। किसी बड़े उद्देश्य के लिए अपने प्राणों की बलि देने के लिए तैयार रहना बहुत ऊ ची स्थिति है और वन्दनीय है। किन्त बिना कारण के निर्दोष स्त्री-बच्चा की हत्या केवल इसलिए करना क्याकि वे गैरमुस्लिम या काफिर हौं, यह कौन सा पुण्य कर्म है? और इसके लिए आत्महत्या को कैसे वन्दनीय माना जाए? ऐसा तर्कहीन जनून केवल अंध श्रद्धा में से ही पैदा हो सकता है। कुरान और हदीस के प्रति अंध श्रद्धा में से ही यह जनून पैदा हो रहा है। गाजी बनना बड़ ा पुण्य माना गया है। कुरान और हदीस के प्रति यह अंध श्रद्धा ही दूसरों के श्रद्धा केन्द्रा को ध्वस्त करने की, गैरमुस्लिम शासित प्रदेश से मुस्लिम शासित क्षेत्र में हिजरत (निष्क्रमण) करने और गैर-मुस्लिमों के विरुद्ध लगातार सशस्त्र युद्ध करने की प्रेरणा देती है। पैगम्बर मुहम्मद का स्वयं का जीवन प्रत्येक मुस्लिम के लिए प्रमाण है। उन्हाने ही मक्का से मदीना को हिजरत का पहला उदाहरण प्रस्तत किया। उन्हाने ही जीवनभर गैर-मुस्लिमों के विरुद्ध युद्ध लड़ ने का खूनी अध्याय लिखा और उन्हाने ही सन् ६३० में मक्का पर अधिकार स्थापित होने के बाद बिना कारण काबा में स्थापित ३६० देव प्रतिमाओं का अपने हाथों अपने सामने विध्वंस किया। मुस्लिम मानसिकता की जड़ श्रद्धालुओं की सामूहिक मानसिकता का निर्माण कुछ फुटकर आयतों या शब्दा से नहीं होता अपितु श्रद्धा पुरुष के प्रत्यक्ष आचरण से होता है। यदि मुस्लिम सामूहिक मानसिकता की जड़ ों को खोजने का प्रयास करेंगे तो उसके बीज कुरान और पैगम्बर मुहम्मद के जीवन में ही मिलेंगे। यही कारण है कि हजरत मुहम्मद की आंखें बंद होते ही खूनी हत्याओं का अध्याय लिखा जाने लगा। हजरत ने अपने जीवन काल में ही पराजितों की लूट के माल को अपने अनुयायियों में वितरित की परंपरा प्रारंभ कर दी थी। उन्हाने अपने मुख्य प्रतिद्वन्द्वी अबू सूफियान की पुत्री से विवाह करके उसे अपने साथ जोड़ कर और मुस्लिम विचारक अकबर अहमद (डि स्कवरिंग इस्लाम, २००३) के अनुसार उसे लूट में से अन्या से अधिक अर्थात् ५३० ऊ ट देकर उपकृत किया जिससे उनके अन्य सहयोगियों के मन में ईर्ष्या भाव पैदा हुआ। अकबर अहमद लिखते हौं कि स्पेन को जीतने वाले अरब सेनापति ने स्पेन की ३०,००० सुन्दरियों को लूट में प्राप्त किया। उसने उत्तरी अफ्रीका में से ३०,००० बिन्दयों को गुलाम बनाकर सैनिकों में वितरित कर दिया। उन्हाने विजित प्रदेशों में से लूटी गयी अपार धन-सम्पत्ति के भी आंकड़े दिए हौं। स्पष्ट ही, प्रारंभिक अरब विजयों में मजहबी जनून से अधिक सुन्दरियों, गुलामों और धन-सम्पत्ति की लूट में हिस्सा पाने का प्रलोभन भी काम कर रहा था। यही कारण है कि हजरत मुहम्मद के स्वर्गवास के कुछ ही वषा के भीतर तीन खलीफाओं की हत्याओं के दृश्य सामने आए। खलीफा उमर मोमिनों के बीच नमाज पढ़ते हुए, कत्ल हुए तो अल बलादुरी के कथनानुसार उस्मान की प्राण रक्षा को कोई मोमिन आगे नहीं बढ़ा और उनकी लाश तीन दिन तक दफन का इन्तजार करती रही। खलीफा उस्मान और खलीफा अली की क्रूर हत्याएं हुईं। यह विचारणीय है कि पहले चार खलीफाओं में से दो अर्थात् अबु बकर और हजरत उमर उनके श्र्वासुर थे तो शेष दो उस्मान और अली उनके सगे दामाद थे। पैगम्बर की मृत्य के ३० वर्ष के भीतर ही ६६० में करबला का युद्ध हुआ, जिसके द्वारा उत्पन्न शिया-सुन्नी विभाजन चौदह साल बाद भी आज तक जिन्दा है। इन युद्धों के पीछे कोई आध्यात्मिक विवाद नहीं दिखाई देता। यह पैगम्बर के दामाद अली और अबूसूफियान के परिवारों के बीच सत्ता का संघर्ष था। इस संघर्ष की परिणति उमय्यद और अब्बासी वंशों के शासन की स्थापना में हुई। इन वंशों के शासन के चरित्र पर अकबर अहमद ईरान की क्रांति के प्रणेता इमाम खुमैनी के शब्दा में प्रकाश ड लते हैं। इमाम खुमैनी कहते हैं, ‘दुर्भाग्य से, सच्चा इस्लाम अपने जन्म के बाद कुछ वषा तक ही जीवित रह सका। पहले उमय्यदों ने फिर अब्बासियों ने इस्लाम को सब तरह से नुकसान पहुचाया बाद में ईरान के शासक भी इसी रास्ते पर चले। उन्हाने इस्लाम को पूरी तरह तोड़ -मरोड़ कर उसकी जगह कुछ और ही बैठा का दिया। उमय्यदों ने निजामे मुस्तफा को आध्यात्मिक की जगह दुनियावी चरित्र दे दिया। उन्हाने शासन का आधार अरबवाद को बनाया जिसका अर्थ था अन्य लोगों के बजाय अरबों को बढ़ावा देने का सिद्धांत। यह सिद्धांत इस्लाम की मूल शिक्षा के एकदम प्रतिकूल था। इस्लाम राष्टीयता को मिटाने और पूरी मानव जाति को एक उम्मा या समुदाय में संगठित करने का आदर्श लेकर चलाया। इस्लामी राज्य को नस्ल और रंग से ऊ पर उठकर काम करना था। किन्त उमय्यदों ने इस्लाम को पूरी तरह तोड़ -मरोड़ कर इस्लाम पूर्व जाहिलिया युग के अरबवाद को पुनरुज्जीवित कर दिया। और आज भी कुछ अरब देशों के नेता इसी नीति का अनुसरण कर रहे हौं। वे खुल्लम-खुल्ला उमय्यदों के अरबवाद जो कि जाहिलिया के अरबवाद से भिन्न नहीं है वापस लाने की इच्छा प्रगट कर रहे हौं।’ (इस्लाम एण्ड रिवोल्यूशन, १९८१ उद्धत, अकबर अहमद पृ. ३०-३१) इमाम खुमैनी ने इस्लाम का उम्मा अथवा एक मजहबी समुदाय का मुद्दा उठाया है। कुरान और हदीस पर आधारित इस्लामी विचारधारा ने भौगोलिक और नस्ली राष्टवाद को अस्वीकार करके इस्लाम पर आधारित सामूहिक पहचान का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इसी सिद्धांत में से खिलाफत की अवधारणा का जन्म हुआ, इस्लामी विचारधारा के अनुसार पूरे विश्र्वा के मुसलमान एक समुदाय है और खलीफा पैगबंर के प्रतिनिधि के नाते उनका एकमात्र मजहबी एवं लौकिक शासक है। सैद्धांतिक धरातल पर एक उम्मा और एक खलीफा का सिद्धांत सन् १९२२ तक किसी न किसी रूप में जीवित रहा। सन् १२५८ में गैरमुस्लिम मंगोल नेता हलाकू खान ने बगदाद पर हमला करके खिलाफत को ध्वस्त कर दिया था किन्त फिर ओटोमन शासकों ने उसे जिन्दा कर दिया। अन्ततः १९२२ में तुर्की के क्रांतिकारी नेता मुस्तफा कमाल पाशा ने खलीफा के पद को सदा सर्वदा के लिए समाप्त कर दिया। किन्त कुरान और हदीस के प्रति श्रद्धा ने मुस्लिम मानस में सिद्धान्त रूप में उम्मा और खलीफा के आदर्श को जिन्दा रखा है। मध्यकाल तक विभिन्न देशों के मुस्लिम शासक खलीफा के नाम का खुतबा पढ़कर इस आदर्श के प्रति अपनी निष्ठा प्रगट करते थे। तुर्की के खलीफा से कोई सम्बंध न होते हुए भी भारतीय मुसलमानों ने खलीफा के प्रति ब्रिटिश दुर्व्यवहार से क्षब्ध होकर भारत में खिलाफत आन्दोलन चलाया। वे ब्रिटिश शासित दारुल हरब से अफगानिस्तान के दारुल को हिजरत कर गए। आज भी मुस्लिम उम्मा की इस भावना से अभिभूत होने के कारण ही कश्मीर, चेचन्या, अफगानिस्तान, बोस्निया आदि देशों में पूरे विश्र्वाभर से जिहादी पहुचते हौं। ओसामा बिन लादेन के अलकायदा का जाल विश्र्वाभर में फैला दिखायी देता है। जैसा कि डाक्टर जकारिया स्वयं भी स्वीकार करते हौं, आज विश्र्वा में अनेक स्वतंत्र मुस्लिम राज्य विद्यमान हैं जिनमें आपस में युद्ध एवं तनाव बने रहते हौं। अरबवाद का मुद्दा इमाम खुमैनी ने दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है अरबवाद का। एक अन्य मुस्लिम नेता अनवर शेख ने इस विषय का गहरा अध्ययन करके निष्कर्ष निकाला है कि पैगम्बर मुहम्मद के नेतृत्व में सातवीं शताब्दी में जो क्रांति हुई थी, उसकी मुख्य प्रेरणा थी अरब राष्टवाद। अरब प्रायद्वीप के बाहर इस्लाम की सैनिक विजयों को अरब राष्टवाद का विस्तार ही कहा जा सकता है। मजहबी जनून, सैक्स, सम्पत्ति और भौतिक सुखों का अपूर्व सिम्मश्रण विद्यमान था। जिस प्रकार हजरत मुहम्मद ने इस्लाम पूर्व अरब के इतिहास को बाहिलिया या अंधयुग घोषित कर दिया था उसी प्रकार विजयी अरब सेनाओं ने प्रत्येक पराजित देश को इस्लाम कबूल करने और अपने इस्लाम पूर्व इतिहास से सम्बंधविच्छेद करने के लिए बाध्य कर दिया। नोबल पुरस्कार विजेता सर विद्यासागर नायपाल ने अपनी रचना ‘बियोंड बिलीफ’ में मुस्लिम समाजों के प्रत्यक्ष अध्ययन अर विश्लेषण में पाया कि इस्लाम में मतान्तरित होने वाला व्यिक्त अपने इस्लाम पूर्व अतीत से पूरी तरह सम्बंधविच्छेद कर लेता है और उसके इस्लामीकरण का अर्थ अरबीकरण हो जाता है। भारत में समय-समय पर मुस्लिम समाज के भीतर जो सुधार आन्दोलन चले, कभी शेख अहमद सरहिन्दी के नेतृत्व में कभी शाह वाह अली उल्लाह के नेतृत्व में। कभी सैयद अहमद बरेलवी के वाहाबी आंदोलन के नेतृत्व में। इन सब आंदोलनों का एकमात्र लक्ष्य मतान्तरित मुसलमानों के पारिवारिक और सामाजिक जीवन में से हिन्दू रीति-रिवाजों और प्रतीकों की जगह अरबी-फारसी प्रतीकों को स्थापित करना था। नामकरण में, वेशभूषा में, दाढ़ी और मूंछों की बनावट में और अरबी-फारसी या उनकी बेटी उर्दू भाषा के प्रति लगाव में। अभी तक इंड नेशिया को इसके अपवाद के रूप में प्रस्तत किया जाता है। वहां के मुसलमान कहते थे कि हमने अपना मजहब बदला है, पूर्वज नहीं। इसलिए इस्लामी पद्धति को भी उन्हाने नाम, वेशभूषा, भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में असंस्कृतिकरण की हवा बनाने का प्रयास हो रहा है। वहां भी नरम और गरम इस्लाम का टकराव आरंभ हो गया है। क्या इस प्रवृत्ति को रोकना आवश्यक नहीं?



जेहाद का इस्लामी फसाद
पिछले कुछ वर्षों में विश्वस्तर पर वामपंथी भी पूँजीवाद के प्रतीक अमेरिका के विरुद्ध अपनी लडाई में जिहादवादी इस्लामवादी आतंकवादियों को अपना सहयोगी मान कर चल रहे है यही तथ्य भारत में नक्सलियों और माओवादियों के साथ भी है। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि भारत में व्यवस्था परिवर्तन का आन्दोलन चलाने वाले भी जाने अनजाने जेहादवादियों के तर्कों का समर्थन करते दिखते हैं।
भारत जिहाद नामी इस्लामी आतंकवाद से पिछले दो दशक से लड रहा है परंतु इसका वैश्विक स्वरूप विश्व के समक्ष 11 सितम्बर 2001 के साथ आया। जिन दिनों भारत इस्लामी आतंकवाद से लड रहा था उन दिनों अमेरिका सहित पश्चिमी विश्व के लोग भारत में कश्मीर केन्द्रित आतंकवाद को स्वतंत्रता की लडाई मान कर हाथ पर हाथ धरे बैठे थे। लेकिन क्या भारत ने कभी अपने देश में चल रहे आतंकवाद को परिभाषित कर उससे लड्ने की कोई रणनीति अपनाई? कभी नहीं? इसके पीछे दो कारण हैं। एक तो इस समस्या को वैश्विक परिदृश्य में कभी देखने का प्रयास नहीं हुआ और दूसरा इस आतंकवाद के विचारधारागत पक्ष पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। भारत में आतंकवाद के लिये सदैव पडोसी देश को दोषी ठहरा कर हमारे नेता अपने दायित्व से बचते रहे और तो और आतंकवाद के इस्लामी पक्ष की सदैव अवहेलना की गयी और मुस्लिम वोटबैंक के डर से इसे चर्चा में ही नहीं आने दिया गया।
भारत ने जिहाद प्रेरित इस इस्लामी आतंकवाद से लड्ने के तीन अवसर गँवाये हैं। पहली बार जब 1989 में इस्लाम के नाम पर पकिस्तान के सहयोग से कश्मीर घाटी में हिन्दुओं को भगा दिया गया तो भी इस समस्या के पीछे छुपी इस्लामी मानसिकता को नहीं देखा गया। यह वह अवसर था जब राजनीतिक इच्छाशक्ति के द्वारा हिन्दुओं के पलायन को रोककर जिहाद को कश्मीर में ही दबाया जा सकता था। वह अवसर था जब पाकिस्तान के विरुद्ध कठोर कार्रवाई कर जिहाद के इस भयावह स्वरूप से भारत को बचाया जा सकता था। इसके बाद दूसरा अवसर हमने 1993 में गँवाया जब जिहाद प्रेरित इस्लामी आतंकवाद कश्मीर की सीमाओं से बाहर मुम्बई पहुँचा। इस अवसर पर भी इस घटना को बाबरी ढाँचे को गिराने की प्रतिक्रिया मानकर चलना बडी भूल थी और यही वह भूल है जिसका फल आज भारत भोग रहा है। तीसरा अवसर 13 दिसम्बर 2001 का था जब संसद पर आक्रमण के बाद भी पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गयी। यह अंतिम अवसर था जब भारत में देशी मुसलमानों को आतंकवाद की ओर प्रवृत्त होने से रोका जा सकता था। इस समय तक भारत में आतंकवाद का स्रोत पाकिस्तान के इस्लामी संगठन और खुफिया एजेंसी हुआ करते थे और भारत के मुसलमान केवल सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों को सहायता उपलब्ध कराते थे। इसके बाद जितने भी आतंकवादी आक्रमण भारत पर हुए उसमें भारत के जिहादी संगठन लिप्त हैं।
अब देखने की आवश्यकता है कि चूक क्यों हुई? एक तो भारत में 1989 के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कभी वैश्विक सन्दर्भ में जिहाद और इस्लाम को समझने का प्रयास नहीं किया गया। आज वैश्विक स्तर पर हम जिस जिहाद की धमक देख रहे हैं या जिस अल कायदा का स्वरूप हमारे समक्ष है वह एक शताब्दी के आन्दोलन का परिणाम है। बीसवीं शताब्दी में मिस्र नामक देश में मुस्लिम ब्रदरहुड नामक उग्रवादी मुस्लिम संगठन का निर्माण हुआ और यह इसे वैचारिक पुष्टता प्रदान करने वाले मिस्र के सैयद कुत्ब थे। जिन्हें 19966 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने मिस्र सरकार को अपदस्थ करने के षडयंत्र को रचने के आरोप में मृत्युदण्ड दे दिया था। सैयद कुत्ब ने नये सन्दर्भ में जिहाद की अवधारणा दी और इस्लाम की राजनीतिक भूमिका निर्धारित की। उन्होंने उम्मा को सक्रिय करने और जाहिलियत का सिद्धांत दिया। सैयद कुत्ब के अनुसार इस्लाम का शरियत और क़ुरान आधारित विशुद्ध शासन समय की माँग है और इसके लिये जिहाद द्वारा राज्य के शासन अपने हाथ में लेना इसका तरीका है। कुत्ब के जाहिलियत के सिद्धांत के अनुसार जो इस्लामी देश पश्चिम के देशों के हाथ की कठपुतली हैं उनके विरुद्ध भी जिहाद जायज है।
कल पाकिस्तान में हुआ विस्फोट इसी सिद्धांत के अनुपालन में किया गया है। सैयद कुत्ब ने पश्चिम की संस्कृति को अनैतिक और जाहिल करार दिया और इसके विरुद्ध जिहाद का आह्वान किया। सैयद कुत्ब की मृत्यु के उपरांत उनके भाई मोहम्मद कुत्ब ने उनके साहित्य को आगे बढाया। उन पर पुस्तकें और टीका लिखीं और अयमान अल जवाहिरी तथा ओसामा बिन लादेन जैसे अल कायदा के प्रमुखों के लिये प्रेरणास्रोत बने। आज भारत में जब इस्लामी आतंकवाद और जिहाद की बात होती है तो इसे 1992 के राम मन्दिर आन्दोलन से जोड कर इस्लामी प्रतिक्रिया मान लिया जाता है। परंतु यह बात दो बातों को प्रमाणित करती है। या तो लोग अनभिज्ञ हैं या फिर जान बूझकर झूठ बोलते हैं। 1991 से वैश्विक स्तर पर जिहाद में एक नया परिवर्तन आया था और ओसामा बिन लादेन ने इंटरनेशनल इस्लामिक फ्रंट की स्थापना की दिशा में कदम बढा लिया था। 1993 में इस फ्रंट की ओर से पहली बार एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए और ईसाइयों तथा यहूदियों के विरुद्ध जिहाद का आह्वान किया गया। इस आह्वान के बाद विश्व में पश्चिम के अनेक प्रतिष्ठानों पर आक्रमण होने लगे।
आज भारत में भी मुस्लिम समाज का कोई न कोई वर्ग विश्व पर इस्लामी शासन की स्थापना के स्वप्न के अंश के रूप में भारत को भी इस्लामी शासन के अंतर्गत लाने की सोच रखता है। आज हमें इस पूरे जिहादवाद को समझना होगा कि यह अब किसी एक संगठन या नेतृत्व द्वारा प्रेरित नहीं है और इसमें प्रत्येक देश के इतिहास और सोच के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या हो रही है। लेकिन इंडियन मुजाहिदीन पूरी तरह अल कायदा की सोच और तकनीक पर काम कर रहा है। उसके आक्रमण और मीडिया प्रबन्धन में यह झलक देख चुके हैं। 15 वर्ष पूर्व यदि अल कायदा ने अमेरिका और पश्चिम तथा पश्चिम के हाथ की कठपुतली बने अरब देशों का विषय उठाया था तो इंडियन मुजाहिदीन पूरी तरह भारत के मुसलमानों से जुडे विषय उठा रहा है। परंतु मूल सिद्धांत एक ही है मुस्लिम उत्पीडन की काल्पनिक अवधारणा से आम मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करना और जिहाद द्वारा इस्लामी राज्य स्थापित करने की चेष्टा।
आज प्रश्न यह है कि इस जिहाद से मुक्ति कैसे मिले? भारत में यह समस्या अत्यंत जटिल है क्योंकि भारत में हिन्दू मुस्लिम सम्बन्धों की कटुता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है और इस बात की आशंका है कि जिहाद की वर्तमान अवधारणा धार्मिक विभाजन को अधिक प्रेरित कर सकती है। जिहाद से लड्ने के लिये राज्य स्तर पर और सामाजिक स्तर पर रणनीति बनानी पडेगी। यह काम किसी भी प्रकार तुष्टीकरण से सम्भव नहीं है और इसका एकमात्र उपाय व्यापक जनजागरण है। व्यापक स्तर पर इस्लाम पर बहस हो। इस्लाम और इस्लामी आतंकवाद के आपसी सम्बन्धों पर बह्स से बचने के स्थान पर इस विषय पर बह्स की जाये और मुसलमानों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने को बाध्य किया जाये। यदि मुसलमान आतंकवाद के साथ नहीं हैं तो पुलिस को अपना काम करने दें और जांच में या आतंकवादियों के पक़डे जाने पर मुस्लिम उत्पीडन का रोना बन्द करें। आज देश में प्रतिक्रियावादी हिन्दुत्व का विकास रोकने क दायित्व मुसलमानों पर है हिन्दुओं पर नहीं। यदि क़ुरान आतंकवाद की आज्ञा नहीं देता और देश के मुसलमान जिहाद से सहानुभूति नहीं रखते तो उन्हें इसे सिद्ध करना होगा अपने आचरण से। अन्यथा इस समस्या को धार्मिक संघर्ष का रूप लेने से कोई नहीं रोक सकता।



कसाब को कुछ नहीं होगा ?
विशेष अदालत में जैसे ही जज तहलियानी ने आमिर कसाब को फांसी की सजा सुनाई, कहते हैं कसाब टूट गया. उसने एक गिलास पानी मांगा. लेकिन कानून के जानकार कहते हैं कि भले ही मुंबई हमलों के 17 महीनों बाद कसाब को फांसी की सजा सुना दी गयी हो लेकिन फांसी पर लटकाने में हो सकता है 17 साल भी लग जाएं.
भारतीय कानून के तहत कसाब के वकील अब इसके बाद हाईकोर्ट में फांसी की सजा के खिलाफ अपील कर सकते हैं. वैसे भी तहलियानी को अपना फैसला रेक्टिफाइ कराने के लिए हाइकोर्ट भेजना ही होगा. वहां भी अगर उसे फांसी की सजा बरकरार रखी गयी तो वह सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी अगर कसाब के प्रति कोई दया नहीं दिखाई तो वह भारतीय संविधान की धारा 72 के तहत राष्ट्रपति के पास प्राण रक्षा की याचिका भेज सकता है. और राष्ट्रपति जी के पास पहले से ही इस प्रकार की 29 याचिकाएं रखी हुई हैं जिसमें 22वें नंबर पर अफजल गुरू है.
इस लंबी कानूनी प्रक्रिया को पूरा होने में कितने साल लगेंगे इसका अंदाजा आप खुद भी लगा सकते हैं. इसलिए चाहे तो कसाब निश्चिंत रह सकता है. उसकी सुरक्षा व्यवस्था और उसका जैसा रख रखाव किया जा रहा है उससे उसकी जिंदगी पाकिस्तान से तो अच्छी कट रही है. सत्रह महीने में 31 करोड़ कसाब पर खर्च किये जा चुके हैं. और इस बात की पूरी संभावना है कि मुंबई के आर्थर रोड जेल से उसे बाहर भी नहीं ले जाया जाएगा क्योंकि उसकी सुरक्षा के लिए वहां विशेष प्रावधान किये गये हैं. प्रेम शुक्ल ने पहले ही कह दिया था कि कसाब का कुछ नहीं बिगड़ेगा. सचमुच कसाब का कुछ नहीं बिगड़ेगा.



कटघरे में ऐ टी एस
देश में में पहली बार हिंदू आतंकवादी गिरोह का भंडाफोड़ कर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने के मंसूबे पालने वाला महाराष्ट्र पुलिस का आतंकवाद निरोधी दस्ता अब अपने ही बुने जाल में फंसता जा रहा है। यही कारण है कि एटीएस अब वैज्ञानिक जांच के नतीजों को अवैज्ञानिक और भोथरे दलीलों से झुठलाने की कोशिश कर रहा है।
गौर करने की बात ये है कि जिस मालेगांव विस्फोट में साध्वी को दोषी ठहराया जा रहा है वह पहली घटना नहीं है. इसके पहले भी 2006 में मालेगांव की मस्जिद के बाहर विस्फोट हो चुका है, जिसमें कई लोग मारे गए थे। इस विस्फोट की जांच भी महाराष्ट्र पुलिस ने की थी लेकिन उसकी जांच पर जब सवालिया निशान लग गया तो जांच सीबीआई को सौंप दी गई। पिछले तीन साल से सीबीआई की स्पेशल टास्क फोर्स इसकी जांच कर रही है। ये वही स्पेशल टास्क फोर्स है, जिसने 1993 के मुंबई बम धमाकों की जांच की थी और इसी जांच के आधार पर इसके लिए लगभग 117 आरोपियों की मुंबई की विशेष अदालत ने सजा भी सुना दी। लेकिन अभी तक मालेगांव विस्फोट की जांच का कोई नतीजा नहीं निकला है।
इसी साल जून महीने में मैंने जब सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो अब रिटायर हो चुके हैं, से इस जांच की स्थिति के बारे में जानना चाहा तो उनका कहना था कि इसकी जांच में कोई खास प्रगति नहीं हो पाई है और उनका ये भी कहना था प्रारंभिक जांच ये जरूर पता चलता है कि इस विस्फोट के पीछे भी उन्हीं लोगों का हाथ है जिन्होंने हैदराबाद की मक्का मस्जिद समेत देश के विभिन्न शहरों में विस्फोटों को अंजाम दिया है। मजे की बात ये है कि मालेगांव की ताजा विस्फोट के लिए प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद सीबीआई का कोई अधिकारी इस मामले मेंकोई नतीजा नहीं निकला.
इसी साल जून महीने में मैंने जब सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो अब रिटायर हो चुके हैं, से इस जांच की स्थिति के बारे में जानना चाहा तो उनका कहना था कि इसकी जांच में कोई खास प्रगति नहीं हो पाई है और उनका ये भी कहना था प्रारंभिक जांच ये जरूर पता चलता है कि इस विस्फोट के पीछे भी उन्हीं लोगों का हाथ है जिन्होंने हैदराबाद की मक्का मस्जिद समेत देश के विभिन्न शहरों में विस्फोटों को अंजाम दिया है। मजे की बात ये है कि मालेगांव की ताजा विस्फोट के लिए प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद सीबीआई का कोई अधिकारी इस मामले मेंचुप हैं
एक बात और जिस समय मालेगांव में विस्फोट हुआ उसी समय गुजरात के मोडासा में भी विस्फोट हुआ। खुफिया एजेंसियों का तब कहना था कि इन दोनों विस्फोटों के पीछे एक ही आतंकवादी संगठन का हाथ है। लेकिन गुजरात पुलिस ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य आरोपियों से पूछताछ के बाद दो दिन पहले साफ कर दिया कि मोडासा विस्फोटों में इस गिरोह के हाथ के सबूत नहीं मिले हैं। स्वाभाविक है कि इसे मोदी सरकार की हिंदू आतंकवादियों को बचाने की चाल कह कर खारिज किया जा सकता है। लेकिन यूपीए सरकार के तहत काम करने वाली सीबीआई पर इस तरह का आरोप नहीं लगाया जा सकता। फिर सीबीआई इस मामले में चुप क्यों है? जबकि साफ है कि मालेगांव में हुए दोनों विस्फोटों के पीछे उद्देश्य और विस्फोट करने का तरीका एक ही है तो फिर सीबीआई प्रज्ञा सिंह ठाकुर से पूछताछ करने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है? ये बड़ा सवाल है और इस सवाल का जबाव ढूंढने में ही साध्वी की गिरफ्तारी और कथित हिंदू आतंकवाद के खुलासे के पीछे छुपे राजनीतिक छल-प्रपंच का भंडाफोड़ हो पाएगा.
जिस तरह से मालेगांव में हुए विस्फोट में सिर्फ साध्वी के नाम पर रजिस्टर्ड मोटरसाइकिल के आधार पर उसे हिंदू आतंकवादी करार दे दिया गया और मीडिया ट्रायल के द्वारा इसे सही साबित करने की कोशिश की गई उससे साफ हो गया कि एटीएस के पास साध्वी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। कोशिश ये की गई कि मुंबई की ही फॉरेंसिक लेबोरेटरी में ही साध्वी की ब्रेन मैपिंग कराकर इसे साध्वी के खिलाफ उपयोग किया जाए। वरना नार्को या ब्रेन मैपिग के लिए मुंबई की फॉरेसिक लेबोरेटरी का कोई खास स्थान नहीं है। इसके लिए सबसे अच्छी लेबोरेटरी बेंगलोर की मानी जाती है। सीबीआई सभी अहम मामलों में ये जांच वहीं कराती रही है। फिर दुनिया के पहले हिंदू आतंकवादियों की ब्रेन मैपिग और नार्को मुंबई की फॉरेंसिक लैब में कराने के पीछे क्या राज हो सकता है? वैसे एटीएस को इसमें भी सफलता नहीं मिली है। फिलहाल साध्वी सभी वैज्ञानिक जांचों में बेदाग निकल गई हैं। अब एटीएस दोबारा से परीक्षण की बात कह रहा है.
इस मामले में बुरी तरह फंस चुकी एटीएस इसे साध्वी की साधना का कमाल बता रही है। जबकि एटीएस के अधिकारियों को ये तो मालूम ही होगा कि सिर्फ नार्को या ब्रेन मैपिंग के आधार पर किसी के दोषी नहीं ठहराया जा सकता, वरना सीबीआई आरूषि हत्याकांड में कृष्णा और राजकुमार के खिलाफ कब का चार्जशीट दाखिल कर देती। खैर एटीएस को तो प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खिलाफ ये भी नहीं मिला है। जाहिर अब थोथी दलीलों के आधार पर एटीएस अपना बचाव करने की कोशिश करने लगी है।

राक्षसी रिवाज :शैतानी शरीयत !!

मुसलमान भारत को दारुल हरब यानी काफिरों का देश कहते हैं .इसीलिए उन्होंने देश का विभाजन करवा कर पाकिस्तान बनवा लिया था .आज पकिस्तान उनके लिए आदर्श इस्लामी देश है .क्योंकि वहां पर शरीयत का कानून चलता है ,जो कुरआन और हदीसों के अनुसार बताया जाता है . लेकिन कुरआन और हदीसों में परस्पर विरोधी ,तर्कहीन ,और महिला विरोधी आदेशों की भरमार है .मुसलमान इतने मक्कार हैं की उन आदेशों में जो उनके लिए लाभकारी होता है ,उसे स्वीकार कर लेते हैं .और जो महिलाओं के पक्ष में होता है उसे गलत कहते हैं .पकिस्तान में सन 1979 में शरीयत का कानून लागू कर दिया गया था जिसे हुदूद मसौदा "Hudud Ordinence "कहा जाता है .

लेकिन पाकिस्तान के कई प्रान्तों जैसे सिंध ,बलूचिस्तान ,पजाब के कुछ भागों और सूबाए सरहद के आलावा अन्य क्षेत्रों में कबाइली कानून और रिवाज चलते हैं .इनमे सारे फैसले वहां की "जिरगा "या पंचायत ही कराती है .यह जिरगा मौत की सजा भी दे सकती है .और अक्सर जिरगा के फैसले बेतुके ,अमानवीय और महिला विरोधी होते हैं .लेकिन हदीसों के हवाले देकर इन फैसलों का कोई विरोध नहीं होता .इसके इन्हीं जंगली हदीसों के कारण वहां पर कई राक्षसी रिवाज भी प्रचलित हो गए है जिन्हें बलपूर्वक मनवाया जाता है .और कहा जाता है कि यह रसूल कि सुन्नत है .यानि रसूल भी यही करते थे ,अथवा यह रिवाज हदीसों और कुरान के अनुसार सही है .

यहाँ कुछ रिवाजों के नाम ,और और कुरान और हदीसों से उनका आधार बताया जा रहा है ,कि इन रिवाजों के पीछे कौन सी आयत या हदीस है .पता चला है कि देखादेखी यह राक्षसी रिवाज भारत के मुसलामानों में फ़ैल रहे हैं .और लोग इन्हें शरियत मान रहे है .

1 -सट्टा वट्टा. سٹّہ وٹّہ Satta Watta

इसका मतलब है "पत्नी विनिमय "या Barter Marriage "अक्सर मुसलमान आपस में ही लड़ते रहते हैं .और कई बार मामला गंभीर होजाने से जिरगा या पंचायत के पास चला जाता है .जब झगड़ा किसीभी तरह से नहीं सुलझाता है तो ,जिरगा ऐसे दौनों पक्षों के परिवार जिनके लडके और लड़कियां हों ,आपस में शादियाँ करा देता है .यानी किसी एक परिवार के लडके की दूसरे परिवार की लड़की से शादी करा दी जाती है .और विवाद का निपटारा हो जाता है .जादातर लोग यह फैसला मान लेते हैं .लेकिन यदि कोई परिवार नहीं मानता है तो ,जिरगा बच्चों की जबरदस्ती शादी करा देता है .यह रिवाज सिंध ,बलूचिस्तान ,पंजाब और सीमांत प्रान्त में प्रचलित है .इसका आधार यह हदीस है -

"अबू हुरैरा ने कहा कि,इब्ने नुमैर ने एक बार रसूल से पूछा कि ,मैं ने अपने पडौसी से कहा कि ,यदि वह अपनी लड़की का हाथ मेरे हाथों में दे देगा तो ,मैं अपनी बहिन की शादी उसके साथ कर दूँगा .क्या ऐसा करना उचित होगा .रसूल ने कहा इसमे कोई बुराई नहीं है ,बल्कि इस से एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से जुड़ जाता है .और मनमुटाव ख़त्म होता है.सहीह मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3299 .

2 -कारोकारी . کاروکاریKaroKari

इज्जत के लिए ह्त्या Honour Killing .चूँकि इस्लाम में औरतों को परदे रखने का हुक्म है ,और यदि लड़कियाँ किसी लडके से बात भी करती हैं ,तो इसे बेशर्मी और गुनाह माना जाता है .और औरतों को घर में ही कैद रखा जाता है .इसका आधार यह हदीसें है .-

"अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा कि औरतें ,गधा ,और कुत्ते लोगों का ईमान बिगड़ देते हैं ,इसलिए इनको एक जगह बांध कर रखना जरूरी है .यह बाहर जाकर ख़राब हो जाते हैं ".सही मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1034

"अब्दुला इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा है कुत्ता ,गधा ,यहूदी ,पारसी (मजूसी )और लड़कियां इमानबिगड़ देते हैं ,इनको बाहर नहीं रहने देना चाहिए ".अबू दाऊद-किताब 2 हदीस 704

"सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा है औरतें ,ऊंट और गुलाम सब एक जैसे हैं .इनको आजादी नहीं देना चाहिए .यह आजादी देने से काबू में नहीं आ सकते हैं "अबू दाऊद -किताब 4 हदीस 2155

अब यदि कोई लड़का या लड़की आपस में प्रेम करने लगते हैं ,या शादी करना चाहते हैं ,तो इसे बदचलनी और इस्लाम के विरुद्ध माना जाता है .और लोग उस परिवार का अपमान करते है .या समाज से निकाल देते है .दोनो परिवार अपनी बदनामी से बचने के लिए उस प्रेमी जोड़े कीहत्या कर देते है .दुःख की बात यह है कि यह हत्याएं उन बच्चों के बाप ,बड़े भाई ,या सम्बन्धी ही करते है .और इस बात को छुपा देते हैं .भारत में भी यह कुरीति आ गयी है .यहाँ सगोत्र ,या अन्य जाती में शादी करने पर हत्या कर दी जाती है .लेकिन मुसलमानों में गोत्र का या जाती का सवाल ही नहीं है .वहां केवल इन हदीसों के कारण ही हत्या करते हैं .सन 2004 में सिंध में 2700 और पंजाब में 2005 में 1300 लड़कों और 3451 लड़कियों की हत्या कर दी गई थी .इस का सारा पाप मुहमद पर पड़ेगा .

यहाँ भी इस कुरीति का विरोध होना चाहिए .यह महा पाप है .

3 -पेटलिखी .پیٹ لکهی Pait Likkhi .

इसका अर्थ है कि बच्चों के जन्म से पूर्व ही उनकी शादी तय कर देना .Arrangin Marriages in the Womb .अक्सर कई मुस्लिम परिवार एक साथ रहते हैं .और एक ही मकान में रहते है .मुसलमानों में चचेरे ,ममेरे भाइयों और बहिनों में शादी हो जाती है .जब किन्हीं भाइयों की औरतें एक ही समय गर्भवती हो जाती है ,तो घर के बुजुर्ग बच्चों के पेट में होते ही आपस में तय कर लेते है की ,अगर अमुक के घर लड़का होगा ,और अमुक के घर लड़की होगी तो ,उनकी आपस में शादियाँ करा देंगे .यह बात काजी के सामने लिखी जाती है .और दौनों तरफ के लोगों के सही कराये जाते है .बाद में यदि कोई इस बात से मुतारता है ,तो उस पर जिरगा जुरमाना लगा देती है .चूंकि यह अनुबंध पेट के बच्चों के लिए होता है ,उस पर बाल विवाह का कानून नहीं लगता ..इसका अधार यह आयतें और हदीसें है -

"अल्लाह माता के पेट में ही जोड़े बना देता है "सूरा-अज जुमुर 39 :4 -6

"हमने हरेक के शकुन अपशकुन को गले में बांध दिया है "सूरा -बनी इस्राएल 17 :13

"गर्भ में क्या है अल्लाह यह जानता है ,"सूरा -हूद 11 :5 .

4 -अड्डोवद्ड़ो. اڈّووڈّو Addo Vaddo

जिन परिवारों में किसी न किसी बात पर विवाद या झगड़े चलते रहते हैं ,वे आपसी झगडा निपटने के लिए एक दुसरे के बच्चों की शादी करा देते हैं .यह एक प्रकार का Child Marriage है .यह रिवाज सिंध पंजाब और बलूचिस्तान में प्रचलित है.इसका आधार यह हदीस है -

"आयशा ने कहा कि जब मैं 6 साल कि थी ,मेरे माँ बाप में मेरी शादी रसूल के साथ कर दी थी और जब मैं 9 साल की हुई तो रसूल ने मेरे साथ सम्भोग किया था "बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 64

इसी हदीस की आड़ लेकर 21 मई 2010 को एक 25 साल के युवक ने एक 6 साल की बच्ची से शादी की थी .और शरई कानून ने उसे जायज बताया था .आज भी पाकिस्तान में छोटी छोटी बच्चियों की शादियाँ होती है ,जिस से कई बच्चियां मर जाती है ,

5 -विन्नी . وِنّی Vinni

यह पश्तो शब्द है . वैसे तो इसका अर्थ है क्षतिपूर्ति या बदला है ,लेकिन किसी की शारीरिक हनी ,या हत्या के बदले में अपराधी से औरतें ली जाती है "Women as Compesation"यह प्रथा सीमांत प्रान्त ,बलूचिस्तान ,और स्वात में अधिक है .इसे उर्दू में दिय्यत دِیَّت Diyyat कहा जाता है .इसके बारे में कुरानऔर हदीसों में यह लिखा है-

"यदि कोई ईमान वाला भूल से या जानबूझकर किसी ईमान वाले ला वध कर दे ,तो मारे गए व्यक्ति के परिवार को एक आदमी सौंपना होगा .और खून के बदले धन भी देना होगा "सूरा -अन निसा 4 :92

"एक पुरुष के बराबर दो स्त्रियाँ होंगीं "सूरा-निसा -4 :11

"यदि मारा गया व्यक्ति पागल हो तो उसकी दिय्यत आधी होगी .और मारी गयी औरत की दिय्यत मर्दों की कीमत से आधी होगी .यानि एक मर्द की हत्या के बदले दो औरतें देना होंगी .और औरत की आयु अगर सात साल से कम हो तो दो छोटी बच्चियों से काम चलाओ ."

बुखारी -जिल्द ५ किताब 59 हदीस 709 .और बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 64

(नोट -इस के मुताबिक एक मर्द के हया के बदले दो औरतें ,या 7 साल से कमकी चार बच्चियां देना होंगी )

फिर जो औरतें या बच्चियांबदले में ली जाती हैं ,उनसे मृतक के परिवार के लोग गुलामी करते हैं .और सब मिल कर बलात्कार भी करते हैं .कई जगह जमीदारों ने अपने निजी जेल भी बना रखे है

.6 -सवरा. سوَرا Swara

इसका अर्थ है शारीरिक क्षति की भरपाई BloodFeud .यदि कोई किसी व्यक्ति के शरीर स्थायी को नुकसान करता है तो ,उसले बदले जो लिया जाता है उसे सवरा कहा जाता है .यह रिवाज भी कई स्थानों में है .कुरान में लिखा है-

"हे ईमान वालो ,बदला लेने में बराबरी होना जरूरी ठहरा दिया गया है ,आजाद का बदला आजाद ,गुलाम का बदला गुलाम ,स्त्री का बदला स्त्री .फिर यदि स्त्री के भाई की तरफ से कोई दिया जाये तो उसे उत्तम रीति से निपटा देना चाहिए .बदला लेना ही बुद्धिमानों का जीवन है "

सूरा -बकरा 2 :178 और 179

"हमने तुम्हें हुक्म दिया है कि जान के बदले जान ,आँख के बदले आंख ,कण के बदले कान ,नाक के बदले नाक ,दांत के बदले दांत और हरेक घाव के बदले घाव है "

सूरा -मायादा 5 :45 .

इन आयातों के अनुसार यदि कोई बदले में बहुत अधिक धन नहीं दे पाताहै तो ,लोग दिय्यत में उसकी लड़की या बहिन को लेने के हकदार होते हैं ,या जिरगा जबरदस्ती शादी करा देती है .आज भी पाकितान की अदालतों में ऐसे हजारों मामले पड़े हैं .क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी ऐसे मामले उठती रहती है .लेकिन शरियत के आगे कुछ नहीं कर पाती है.

7 -वुलवार.وُلوار Vulvar

महिला खतना Female Genital Mutilation ,इसके बारे में पिछले लेखों में विस्तार से दिया गया है .इसमे चार से पांच साल की बच्चियों की योनी की भगनासा (Clitoris )और उसके आसपास के भगोष्ठ को छील दिया जाता है .कई बार इस से बच्चियों की मौत भी हो जाती है .

सब जानते हैं कि मुसलमान हफ़्तों तक नहीं नहाते .वह इसे रसूल कि सुन्नत मानते हैं .मुसलमान नहाने से बचने के लिए बच्चियों कि खतना करा देते हैं .हदीस में कहा है कि

"यदि कोई खतना वाले पुरुष का अंग (लिंग )किसी बिना खतना वाली स्त्री के अंग (योनी )में प्रवेश करता है ,तो उस पुरुष को गुस्ल(स्नान )करना जरुरी है "सही मुस्लिम -किताब 3 हदीस 684 .

इसलिए मुसलमान बार बार नहाने से बचने के लिए लड़कियों कि खतना करा देते है .फिर मुहम्मद ने भी कहा था कि -

"उम्मे आत्तिय्या अन्सारिया ने कहा कि ,मदीना में एक औरत एक बच्ची की खतना कर रही थी .रसूल वहां गए और उस औरत से कहा कि इस बच्ची कि योनी को इतनी गहरायी से मत छीलना जिस से योनी कुरूप हो जाये ,और इस बच्ची के पति को पसंद न आये "

सहीह मुस्लिम -किताब 41 हदीस 3251

8 -औरतोंकी गवाही

अल्लाह और मुहमद औरतों को आधा प्राणी (Half Human )मानते थे .मुहम्मद की कई कई औरतें थी .और अल्लाह कुंवारा है .इसलिए यह औरतोंकी कद्र नहीं करते .इस्लामी कानून में औरतों की आधी कीमत है -

"औरतों की दिय्या(मौत की कीमत )मर्दों से आधी होगी" .सूरा -निसा 4 :92

"एक मर्द गवाह के विरुद्ध प्रमाण देने के लिए दो औरतों की गवाही लाना पड़ेगा .यदि दस मर्द हों तो उनके विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए 21 औरतों की गवाही जरूरी है "बुखारी -जिल्द 1 किताब 6 हदीस 301

"दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर मानी जायेगी "सूरा -बकरा 2 :282

यही कारण है कि अरब ,ईरान या पाकिस्तान में यदि किसी औरत पर बलात्कार होता है ,तो वह पूरे गवाह पेश नहीं कर पाती है .फिर शरई अदालतें उन पर व्यभिचार का आरोप लगा कर पत्थर मार कर मौत की सजा दे देती हैं ऐसे कई मामले अक्सर आते रहते हैं .

तात्पर्य यह है इस्लाम कुरान ,और मुहम्मद केवल गैर मुस्लिमों के लिए अभिशाप नहीं है ,बल्कि खुद मुस्लिम औरतो के लिए लानत है .इस्लामी कानून मुस्लिम औरतो की आजादी लिए बाधक है .और कुरआन और हदीसें सारी कुरीतियों की जननी हैं .

छोड़ दो ऐसा जंगली इस्लाम ,और फेक दो बेतुकी कुरआन और हदीसें !



रसूल की पत्नी :ज़िंदा दफ़न !!

इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे कि ,पापियों और दुष्टों के कुकर्मों का फल खुद उसको और उसके सारे परिवार के लोगों को भुगतना पड़ता है.जिस तरह से मुहम्मद ने निर्दोष लोगों की हत्याएं करवाईं ,उसी तरह से खुद मुहम्मद ,उसकी बेटी फातिमा ,उसके दामाद अली ,और नवासे हसन ,हुसैन की हत्याएं की गयी थीं .इसके बारे में पिछले लेखों में विस्तार से दिया गया है .
मुहम्मद 25 साल की आयु से मरते समय 63 साल की आयु तक अल्लाह का रसूल होने का दावा करता रहा .लेकिन लगता है कि स्वयं मुहमद के अनुयायी उसके दावों पर यकीन नहीं करते थे .वरना उसकेपरिवार के लोगों को इतनी बेदर्दी से क़त्ल नहीं करते .
बाकी बातें तो सब जानते हैं ,मगर मुसलमान बड़ी चालाकी से ,मुहम्मद की सबसे प्यारी पत्नी आयशा बिन्त अबूबकर की मौत के बारे में खामोश रहते हैं .किसी को आयशा की कब्र का पता नहीं है .मुसलमान किसी को नहीं बताते कि आयशा कैसे और कब मरी थी .हम बताते हैं -
1 -आयशा की शादी कब और कैसे .
सब जानते हैं कि मुहम्मद को औरतों का शौक था ..उसने 25 साल कि आयु में 40 साल की एक धनवान विधवा खदीजा से धन की खातिर शादी की थी .सन 620 खदीजा का देहांत हो गया .इसके बाद मुहम्मद ने फिर सौदा नामकी विधवा से शादी कर ली .उस समय सौदा 30 साल की और मुहम्मद 50 साल का था .
उन्हीं दिनों मुहम्मद के घर के पास अबूबकर का परिवार रहने लगा .यह परिवार अबीसीनिया से मदीना आया था .अबूबकर की पत्नी का नाम ऊम्मे रूमान था .उसकी बड़ी बेटी का नाम असमा और छोटी का नाम आयशा था ,जो 6 साल की थी .अबूबकर के बेटे का नाम भी मुहम्मद था .
एक दिन मुहम्मद की नजर आयशा पर पड़ गयी जो उस समय गुड़ियों से खेल रही थी .जब मुहम्मद ने अबूबकर से कहा की मैं अल्लाह का रसूल हूँ .और मुझे अल्लाह ने इस बच्ची से शादी करने का हुक्म दिया है .अबूबकर मुहम्मद की चाल में आगया .और उसने सन 623 में मुहम्मद की शादी आयशा से कर दी .उस समय मुहमद की आयु 53 साल थी .कुछ लोग आयशा की शादी की आयु 9 साल बताते है .
मुहम्मद को कुंवारी लड़की पसंद आगई .मुहम्मद ने आयशा को "उम्मुल मोमनीन "यानी मुसलमानों की अम्मा का ख़िताब दे दिया .
आयशा मुहम्मद की प्यारी पत्नी बनी रही .यद्यपि मुहम्मद ने इसके बाद कई शादियाँ और भी की थीं
2 -आयशा चालाकियां
धीमे धीमे आयशा ने मुहम्मद को पूरी तरह कब्जे में कर लिया .मुहम्मद आयशा की गोद में कुरआन की आयतें बनाता था .और आयशा भी जो कहती थी ,लोग उसे हदीसें समझकर लिख लेते थे ..आयशा बड़ी होकर राजनीति भी करने लगी .और अपने पिता के पक्ष में माहौल बनाती रही .आयशा के कारण ही अबू बकर पहिला खलीफा बना था .
3 -आयशा व्यभिचार में पकड़ी गयी
कहा जाता है कि आयशा मुहम्मद से संतुष्ट नहीं थी .एक समय वह मुहम्मद के साथ काफिले में जा रही थी .तो काफिला एक जगह विश्राम के लिए ठहर गया .आयशा बिना मुहम्मद को बताये अचानक काफिले से गायब हो गयी .एक दिन और दो रात तक उसका कोई पता नहीं चला .खोज करने पर आयशा "सफ़वान बिन मुत्तल "नामके जवान के साथ पकड़ी गयी .आयशा ने बहाना किया कि वह अपने गले का हार खोनाने के लिए गयी थी .जब आयशा अपने निर्दोष होने का सबूत नहीं दे सकी ,तो लोगों ने कानून के अनुसार आयशा को चालीस कोड़े लगाने की मांग की .मुहम्मद आयशा के रूप में इतना अँधा हो गया था कि ,उसने उसी समय कुरआन कीएक आयत सूरा -अहजाब 33 :53 लोगों को सूना दी .और कहा की अल्लाह ने आयशा को निष्पाप माना है .उसे कोई सजा नहीं हो सकती .
बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 632
यही नहीं ,आयशा मुहम्मद को हमेशा सम्भोग के लिए उकसाती थी .ताकि वह वश में रहे .
4 -मुहम्मद की हत्या में आयशा का हाथ
शिया लोगों का आरोप है कि मुहम्मद कुदरती मौत नहीं मारा था .उसकी हत्या कि गई थी .और इस ह्त्या में मुहमद कि एक पत्नी "हफसा "और "आयशा "का हाथ था ,जिस यहूदी औरत ने मुहम्मद को जहर दिया था उस जहर से मुहम्मद बीमार हो गया था .मुहम्मद आयशा के साथ सम्भोग के समय मरा था .(पिछले लेख देखिये )
5 -आयशा के षडयंत्र
आयशा ने मुहम्मद की मौत के बाद अपना काफी प्रभाव बाधा लिया था .और लोगों को अपने पक्ष में कर लिया था .आयाशाने अपने पिता अबू बकर को चालाकी से खलीफा बनवा दिया .जबकि अली को खलीफा बनना चाहिए था .आयशा ने अपने पिताको अली के घर पर हमला करने को उकसाया था .अबूबकर और उम्र ने फातिमा के घर में घुसकर फातिमा को इतनी जोर से किवाड़ के बीच में दवाया कि फातिमा के पेट से बच्चा गिर गया .और फातिमा भी मर गई ..
इसी तरह आयशा ने 17 जुलाई सन 656 को अपने भाई "मुहम्मद बिन अबू बकर "से खलीफा "उस्मान बिन अफ्फान "कि हत्या करवा दी थी .जब उस्मान कि पत्नी "नाईला "पति को बचाने लगी तो आयशा के भाई ने उसकी उंगलियाँ काट दीं.
आयशा काफी महत्वाकांक्षी औरत थी .उसके कई दुसमन भी बन गए थे .चौथे खलीफा अली कि हत्या हो जाने के बाद सन 661 में "मुआविया बिन अबू सुफ़यान "खलीफा बना .आयशा की पाहिले तो मुआविया से काफी दोस्ती रही .लेकिन मुआविया आयशा के दोगले स्वाभाव से नाराज हो गया .वह आयशा को रस्ते का कांटा मानने लगा .और एक दिन आयशा की इस तरह से हत्या कर दी कि इसको जानकर मुहम्मद की कब्र भी कांपती रहती है .मुसलमान इस बात को छुपाते हैं .पूरी घटना इस प्रकार है -
6 -आयशा कुत्ते की मौत मरी
हम हिंदी के साथ अंगरेजी में पूरे सबूत दे रहे है
"मुशरफुल मोमिनीन शेखुल तरीकत ,हजरत ख्वाजा महबूब कासिम चिश्ती मुशरफी ने इतिहासकार "इब्ने खुल्दून"के पेज नंबर 616 पर लिखा है ,कि मुआविया ने एक दिन आयशा को अपने महल में खाने कि दावत पर बुलाया .इसके पाहिले मुआविया ने एक गहरा गड्ढा खुदवा रखा था .और उस गड्ढे में सीधे खड़े हुए भाले और तलवारें गाड़ रही दी .और उसपर लकड़ी के कमजोर पट्टे रख कर ढँक दिया था .फिर जब आयशा आई तो तो उसी पर कालीन बिछाकर आयशा की कुर्सी रखवा दी .जैसे ही आयशा उस कुर्सी पर बैठी ,सीधे गड्ढे में लगे भले ,तलवारों से बिध गयी .और घायल होकर तड़पने लगी .मुआविया ने उसी समय गड्ढे को भरवा कर समतल करा दिया .यह सन 678 की बात है
Musharaf al Mehboobeen, By Sheikh ul Tareeqat Hazrat Khwaja Mehboob Qasim Chishti Muhsarafee Qadiri, Page 616
Mawiya invited Hazrat Ayesha for dinner. He ordered for a ditch to be dug, and filled it with spears and swords tipped upwards. According to the History of Allama Ibn Khaldun, Mawiya covered this deep well with weak wood and covered it with carpet. He placed a wooden chair on top of this trap in respect for Hazrat Ayesha. As soon as Hazrat Ayesha sat on the chair, she fell into the well and got severely injured with a lot of broken bones. To hide his crime, Mawiya ordered the sealing of the well and with it, buried Ayesha in it, thus was responsible for the murder of Ayesha.
इस से साबित होता है कि मुहम्मद अल्लाह का रसूल नहीं था .और हरेक व्यक्ति को उसके कुकर्मों का फल जरूर मिलताहै .मुसलमान इस बात जितना भी छुपाये .,सच्चाई चुप नहीं सकती है .अब कोई मुस्लिम ब्लोगर बताये कि आयशा कैसे मरी थी
http://www.ahlalhdeeth.com/vbe/showthread.php?t=7374
मुहम्मद कीहत्या आयशा ने की थी इसके प्रमाण भी देखिये आयशा
http://www.youtube.com/watch?v=_HiMgW9yd7w



अल्लाह को जानिये !

अधिकांश गैर मुस्लिम लोगों को अल्लाह और इस्लाम के बारे में पुरी जानकारी नहीं होती है .लोगों को अल्लाह और इस्लाम के बारे में वही जानकारी होती है ,जो वह फिल्मों और टी वी चेनलों में देखते हैं .चालाक मुस्लिम ब्लोगर अपने ब्लोगों में इस्लाम के बारे में प्रचारित करते है .इस झूठे प्रचार के कारण कुछ लोग खुद को सेकुलर मानने लगे हैं .और अल्लाह को ईश्वर कहने लगे हैं .इन लोगों को अल्लाह के बारे में न तो यह पता है की अल्लाह का कैसा स्वभाव है ,और उसे क्या पसंद है .और वह किस चीज से नफ़रत करता है .या किस बात को नापसंद करता है .हम आपको अल्लाह की पसंद और नापसंद की कुछ बातें संक्षिप्त में दे रहे है -
अल्लाह को पसंद है -1 मस्जिदें बनवाना 2 लोगों को डराना 3 अपनी तारीफ़ करवाना 4 मुसलामनों के मुंह की सडांध 5 लोगों को बीमार करना 6 मर्दों के गर्दन तक लटके बाल 7 मुसलमानों के गंदे पैर 8 लड़ाई ,जिहाद 9 लूट का माल
अल्लाह को नापसंद है -संगीत ,वाद्य 2 सवाल करना 3 औरतों का सम्भोग से इंकार 4 यहूदी ,ईसाई 5 शिक्षा ,पढाई 6 खेती करना 7 गैर मुस्लिमों से दोस्ती .करना .
अब आपको इसके बारे में प्रमाणिक हदीसों और कुरआन से सबूत दिए जा रहे हैं -
1 -मस्जिदें बनवाना
"रसूल ने कहा किजो व्यक्ति जितनी भी मस्जिदें बनवायेगा ,अल्लाह उसके लिए जन्नत उतने ही मकानबनवा देगा "
बुखारी -जिल्द 1 किताब 8 हदीस 441
"शुक्रवार के दिन फ़रिश्ते मस्जिद के दरवाजे पर आ जाते हैं ,और लोगों के आने का इंतजार करते है .और मस्जिद बनवाने वाले को दुआ देते रहते हैं .इस से अल्लाह खुश होता है ."बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 433
"अल्लाह को बाजारों से नफ़रत ,और मस्जिदें पसंद है ".मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1416
2 -लोगों को डराना -
"अबू मूसा नेकहा कि ,रसूल ने बताया कि अल्लाह चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण इसलिए करता है कि लोग डर जाएँ ,और डर के मारे अल्लाह को पुकारने लगें "बुखारी -जिल्द 2 किताब 18 हदीस 167
3 -अपनी तारीफ़ करवाना -
"अबू हुरेरा ने कहा कि रसूल ने कहा कि अल्लाह अपनी तारीफ़ सुन कर खुश होता है .अल्लाह अपनी जीतनी इज्जत और तारीफ़ खुद करता है ,उतनी कोई दूसरा नहीं कर सकता .अल्लाह को अपनी तारीफ़ पसंद है "मुस्लिम -किताब 37 हदीस 6647 और 6648
4 -मुंह की बदबू और सड़ांध
"अबू हुरेरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि अल्लाह को रोजेदार मुसलमानों के मुंह से निकलने वाली बदबू और सडांध बहुत पसंद है .अल्लाह को उस बदबू में मुश्क की खुश्बू आती है ."बुखारी -जिल्द 7 किताब 72 हदीस 811
5 -लोगों को बीमार कर देना -
"रसूल ने कहा कि अल्लाह अपने मुस्लिम बन्दों को ,कोढी ,अंधाऔर गंजा कर देता है .और उनको बीमार कर देता है .ऐसा करके अल्लाह ईमानवालों का इम्तिहान लेता है "मुस्लिम -किताब 42 हदीस 7071 और अबू दौउद -जिल्द 2 किताब 20 हदीस 2083
6 -मर्दों के लम्बे बाल -
"इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने बताया कि ,अल्लाह को रसूल के गर्दन से नीचे लटके हुए बाल बहुत पसंद है ,क्योंकि अहले किताब (यहूदी ,ईसाई )ने नबियों के ऐसे ही बाल थे .और यह देखकर रसूल ने भी वैसे बाल रख लिए "बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 758
7 -गंदे पैर -
"रसूल ने कहा कि अगर किसी जिहादी के पैर जिहाद के कारण मिट्टी और धूल से घुटनों तक सने होंगे ,तो अल्लाह ऐसे पैरों को पसंद करेगा ,नाकि धुले हुए साफ पैरों को "बुखारी -जिल्द 2 किताब 13 हदीस 30
8 -लड़ाई करना और जिहाद करना -
"अबू मूसा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि जो मुसलमान हमेशा अल्लाह के नाम पर लड़ता रहता है ,और जिहाद करता है ,तो अल्लाह उसे सबसे अधिक पसंद करता है .और जन्नत में उसे ऊंचा दर्जा मिलेगा "बुखारी -जिल्द 1 किताब 3 हदीस 125
9 -लूट का माल -
"जुबेरिया बिन कदम ने कहा कि उस समय मदीना के लोग अक्सर जिहाद करते थे ,और और लोगों से जबरन जकात और जजिया वसूलते थे .रसूल कहते थे कि इस से अल्लाह खुश होता है "बुखारी-जिल्द 4 किताब 53 हदीस 388
"अबू हुरेरा ने कहा कि रसूल लूट के माल से धनवान हो गए थे .उनके पास कई मर्द और औरतें गुलाम थे ..तसूल कहते थे कि मुझे धनवान देखना अल्लाह को पसंद है ,बुखारी -जिल्द 3 किताब 37 हदीस 495
अब आपको बताते हैं कि अल्लाह को कौन सी बातें नापसंद हैं ,या किस बात से नाराज होता है .देखिये -
1 -संगीत और वाद्य
"रसूल ने कहा कि ,घंटी बजाना ,और संगीत के वाद्य शितन के काम हैं ,और अल्लाह को नापसंद हैं .मुस्लिम -किताब 24 हदीस 5279
"अबू मालिक ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,जो व्यक्ति संगीत का आनद लेगा ,और बाजे बजाएगा ,और रेशम के कपडे पहनेगा ,अल्लाह उसे बर्बाद कर देगा .और उसे सूअर और बन्दर बना देगा .बुखारी -जिल्द 7 किताब 69 हदीस 49
2 -सवाल करना -
"रसूल ने कहा कि जोभी व्यक्ति अल्लाह के बारे में सवाल करेगा तो वह शैतान के प्रभाव में है ,अल्लाह को उसके बारे में सवाल करना पसंद नहीं है .बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 496 और मुस्लिम -किताब 1 हदीस 242 -243
3 -औरतों का सम्भोग से इन्कार .
"अबू हुरेरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,अगर कोई औरत अपने पति के कहने पर तुरंत सम्भोग के लिए तैयार नहीं होती ,तो उस से अल्लाह नाराज हो जाताहै .और जब तक वह सम्भोग नही करवा लेती ,अल्लाह उसे धिक्कार करता है .मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3367 -3368
"रसूल ने कहा कि ,औरत को पति के कहने पर सब काम छोड़कर तुरंत सम्भोग के लिए टायर हो जाना चाहिए .यदि वह पति के साथ ऊंट के हौदे में हो तो उसी पर सम्भोग करावा लेना चाहिए .वरना अल्लाह नाराज होगा .इब्ने माजाकिताब 3 हदीस 1853 -1855
4 -यहूदी और ईसाई
"अलाह को यहूदियों और ईसाइयों से इतनी नफ़रत हुई कि ,उन्हें बन्दर और सूअर बना दिया .कुरआन .सूरा मायदा 5 ;60
"सलीम बिन अब्दुलाह ने कहा कि ,रसूल ने कहा ,अगर यहूदी और ईसाई दुआ करेंगे तो अल्लाह उसका आधा सवाब मुसलमानों को दे देगा .अल्लाह को वे लोग पसंद नहीं हैं .बुखारी -जिल्द 1 किताब 10 हदीस 352
5 -शिक्षा और पढ़ाई
"अता बिन यासर की रवायत है कि ,अल्लाह को शिक्षा से नफ़रत है ,वह अशिक्षा और पसंद करता है .बुखारी -जिल्द 3 किताब 34 हदीस 355
"मूसा बिन इस्माइल अल बहरीने कहा कि ,रसूल ने कहा कि अल्लाह अन पढों को इसलिए पसंद करता है ,क्योंकि उसका रसूल भी खुद को अनपढ़ कहता है .अल्लाह यह नहीं चाहता कि कोई रसूल से अधिक पढ़ जाये .मुस्लिम -किताब 1 हदीस 264
6 -खेती करना
"अबू उमामा नेकहा कि रसूल ने कहा कि ,अल्लाह को खेती की जगह जिहाद ,और औजारों कि जगह हथियार ज्यादा पसंद हैं .जो खेती को छोड़कर जिहाद करेगा अल्लाह उसे पसंद करेगा .बुखारी -जिल्द 3 किताब 39 हदीस 514
7 -गैर मुस्लिमों से दोस्ती
"ईमान वालों को चाहिए कि वह काफिरों को दोस्त न बनायें .कुरआन .सूरा आले इमरान 3 :28
अब इस पूरे विवरण को पढ़ने के बाद आपको अल्लाह की पसंद और नापसंद के बारे में अच्छी तरह से पता चल गया होगा ..यह लेख वह लोग जरुर पढ़ें जो सेकुलर हैं .और अल्लाह को ईश्वर मानाने भूल कर रहे हैं.
http://www.islam-watch.org/AbulKasem/BismiAllah/3a.htm



अल्लाह क्या देगा :रसूल क्या लेगा !!

इस्लाम के अलावा सभी धर्म यही चाहते हैं ,कि मनुष्य अपना जीवन परोपकार और प्राणिमात्र के कल्याण के लिए समर्पित कर दे .और इसके बदले ईश्वर उसे इस जीवन में सुख शान्ति और मोक्ष या मुक्ति प्रदान करेगा उत्तम व्यक्ति ईश्वर से केवल ज्ञान और आत्मशान्ति मांगते हैं.
चूँकि इस्लाम का उद्देश्य मानव कल्याण नहीं है ,और मुसलमानों की इच्छा इस जीवन में और मरकर जन्नत में अय्याशी करना है .और मुसलमान भी अल्लाह से यही माँगते रहते हैं .इस्लाम का आधार सेक्स होने के कारण अल्लाह मुसलमानों को जन्नत में जो कुछ देगा उसके सिर्फ दो नमूने दिए जा रहे हैं .इसी तरह रसूल भी मुसलमानों से बदले में उनकी जो चीज मांगता है ,वह भी बताई जा रही है .
1 -अल्लाह सौ लोगों के बराबर संभोगशक्ति देगा -
"रसूल ने कहा कि ईमान वालों को जन्नत में सम्भोग करने के लिए इतनी शक्ति प्रदान की जायेगी कि वह सौ लोगों के बराबर सम्भोग कर सकेगा .जब रसूल से पूछा गया कि क्या व्यक्ति इतना सम्भोग कर सकेगा ,तो रसूल ने कहा कि हाँ ,उसे सौ आदमियों के बराबर सम्भोग की शक्ति मिलेगी . وقال الرسول الكريم : 'إن المؤمن وستعطى قوة كذا وكذا في الجنة لممارسة الجنس. وتساءل البعض : يا نبي الله! يمكن فعل ذلك؟ وقال : "انه سوف تعطى قوة مائة شخص. मिश्कात अल मस्बीह -जिल्द 4 किताब 42 हदीस 24
The Holy Prophet said: 'The believer will be given such and such strength in Paradise for sexual intercourse. It was questioned: O prophet of Allah! can he do that? He said: "He will be given the strength of one hundred persons.
Mishkat al-Masabih Book IV, Chapter XLII, Paradise and Hell, Hadith Number 24
2 -अल्लाह ऐसा लिंग देगा जो सदा खडा रहेगा
"अबू उमम की रिवायत है ,कि अल्लाह के रसूल ने कहा कि ,अल्लाह जिसे भी जन्नत में दाखिल करेगा ,उसे संभोग के लिए 72 औरतें दी जाएँगी .जिसमे दो हूरें होंगी और 70 उसकी सहायक होंगी .और सम्भोग के लिए उस व्यक्ति का लिंग सदा खडा रहेगा ."
" وكل منهم أجهزة شبق الجنس وانه سوف يكون لها أي وقت مضى القضيب. ' " सुन्नन इब्ने माजा -किताब जुह्द हदीस 39
Abu Umama narrated: "The Messenger of God said, 'Everyone that God admits into paradise will be married to 72 wives; two of them are houris and seventy of his inheritance of the [female] dwellers of hell. All of them will have libidinous sex organs and he will have an ever-erect penis.' "
Sunan Ibn Maja, Zuhd (Book of Abstinence) 39
3 -इसके बदले मुहम्मद को क्या चाहिए
आप सोच रहे होंगे कि मुहम्मद मुसलमानों को यह वरदान मुफ्त में दिलवा देगा .वह भी मुसलमानों से जो चीज मागता है ,वह खुद बताता है .आप खुद देखिये -
"रसूल ने कहा कि जो भी अपनी दौनों टांगों के बीच की चीज (लिंग )और अपने होंठ मुझे सौप देगा उसी को जन्नत में जगह मिलेगी "
حدثنا ‏ ‏محمد بن أبي بكر ‏ ‏حدثنا ‏ ‏عمر بن علي ‏ ‏ح ‏ ‏و حدثني ‏ ‏خليفة ‏ ‏حدثنا ‏ ‏عمر بن علي ‏ ‏حدثنا ‏ ‏أبو حازم ‏ ‏عن ‏ ‏سهل بن سعد الساعدي ‏
‏قال النبي ‏ ‏صلى الله عليه وسلم ‏ ‏من توكل لي ما بين رجليه وما بين لحييه توكلت له بالجنة ‏
Muhammad ibn Abi Bakr, Umar ibn Ali narrated and told me Khalifa Umar ibn al-Ali told us told us Abu Hazim from Sahl bin Saad Al-Saadi:
The Prophet peace be upon him said: Whoever entrusts to me what is between his legs and what is between his lips will be granted paradise.
बुखारी -जिल्द 1 किताब 32 हदीस 6309
इस विवरण से साफ साबित होता है कि इस्लाम कोई धर्म नहीं है .और मुहम्मद के साथ अल्लाह भी सेक्स के रोगी हैं .यही कारण है ,कि इम्पेक्ट की गैंग हर बात पर भगऔर लिंग की बात करते रहते हैं .जब उनका अल्लाह और रसूल इस गंदी मानसिकता के हैं ,तो मसलमान शरीफ कैसे हो सकते है यह सारा सबूत विकी इस्लाम में "sexuality "टोपिक में उपलब्ध है .
यदि यह लोग व्यक्तिगत आक्षेप लगायेंगे तो विवश होकर हमें "इस्लामी कामसूत्र "या "रसूल लीला "प्रकाशित करना पडेगा .
http://www.wikiislam.net/wiki/Qur'an,_Hadith_and_Scholars:Aisha#Sexuality



मुहम्मद का लिंग चमत्कार !

यह एक अटल सत्य है कि "जैसी मति वैसी गति "अर्थात व्यक्ति जीवन जैसे विचार और आचार रखता है ,उसकी मौत भी वैसी ही होती है .मुसलमान भले मुहम्मद को रसूल और महापुरुष कहते रहें ,लेकिन वास्तव में वह एक अत्याचारी ,कामी और बलात्कारी व्यक्ति था .वह औरत के लिए ह्त्या भी करवाता था .मुहम्मद का यही दुर्गुण उसकी दर्दनाक मौत का कारण बन गया .मुहमद कुदरती मौत नहीं मरा ,उसकी जहर देकर ह्त्या की गयी थी .मुसलमान इस बात को छुपाते हैं .और टाल जाते हैं .लेकिन इसके पुख्ता सबूत मौजूद है .
1 -मुहमद की हत्या के निमित्त
हमने पिचले लेख में बताया था कि सन 628 में मुहम्मद ने अपने साथियों के सात बनू कुरेजा के कबीले पर धन के लिए हमला किया था .इस हमले उसने कबीले के यहूदी पुरुषों ,बच्चों और काबिले के सरदार "किनाना बिन अल रबी "की ह्त्या करा दी थी .और उसकी पत्नी साफिया के साथ जबरन शादी कर ली थी .और उसी दिन सफियाने मुहम्मद के खाने में जहर मिला दिया था .जो मुहम्मद के शरीर में धीमे धीमे असर करता रहा .और आखिर वह उसी जहर के कारण ऎसी मौत मरा कि मुसलमान दुनिया में यह बात बताने से कतराते हैं .
2 -साफिया ने मुहम्मद को जहर दिया
"अब्दुर रहमान बिन अबूबकर ने कहा कि रसूल ने एक भेड़का बच्चा जिबह किया ,और उसे पकाने के लिए साफिया के पास भिजवा दिया .साफिया ने उसे पकाया .बुखारी -जिल्द 3 किताब 47 हदीस 787
"अनस बिन मालिक ने कहा कि .रसूल की एक यहूदी पत्नी ने भेड़ का बच्चा पकाया था ,जिसमे जहर था .रसूल प्लेट से लेकर वह गोश्तखा गए
बुखारी -जिल्द 3 किताब 47 हदीस 786
3 -जहर से मुहम्मद बीमार रहता था
"आयशा ने कहा कि रसूल कहते थे कि मैं सीने में दर्द महसूस करता हूँ ,लगता है यह उसी खाने के कारण है ,जो मैंने खैबर के हमले के समय खाया था.मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरे गर्दन की धमनी कट गयी हो .बुखारी- जिल्द 5 किताब 59 हदीस 713
4 -मुहम्मद मौत से डरता था -
"आयशा ने कहा कि उस दिन (मौत के दिन )रसूल के साथ सोने की मेरी बारी थी ,रसूल ने कहा मुझे पता नहीं है ,कि मैं कहाँ जाऊँगा ,कहाँ सोऊंगा और मेरे साथ कौन होगा .मैंने कहा यद्यपि मेरी बारी है ,फिर बी अप किसी के साथ सो सकते है .मुझे पता नहीं था कि रसूल अगली दुनिया की बात कर रहे थे ..बुखारी -जिल्द 7 कित्ताब 62 हदीस 144
5 -मुहम्मद की नफरत भरी इच्छा
"इब्ने अब्बास ने कहा जिस दिन रसूल मरे .वे मुझ से कह रहे थे ,सारे अरब से काफिरों ,यहूदियों और ईसाइयों को निकाल दो ,उनके उपासना स्थलों को गिरा दो .और उनको कबरिस्तान में बदल दो .बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 660
6 -मुहम्मद की मौत का हाल
मुहमद कि मौत 8 जून सन 632 को हुयी थी आयशा उसके साथ थी ,उसने कहता -
आयशा कहा कि रसूल की तबीयत खराब थी ,मैं पानी लेकर आई और रसूल को पानी पिला कर उनके चहरे पर पानी मला .रसूल आपने हाथ ऊपर करके कुछ कहना चाहते थे ,लेकिन उनके हाथ नीचे लटक गए .बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 730
"आयशा ने कहा कि उस दिन रसूल के साथ सोने की मेरी बारी थी ,रसूल मेरे पास थे ,लेकिन अल्लाह ने उन्हें उठा लिया.मरते समयुनका सर मेरे दोनों स्तनों के बीच था .उआकी लार मेरे थूक से मिल कर मेरी गर्दन से बह रही थी .बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 144 -145
"रसूल की लाश को अली बिन अबू तालिब और अल अब्बास ने पर पकड़ कर जमीन पर रख दिया .बुखारी -जिल्द 1 किताब 11 हदीस 634
7 -मुहम्मद का लिंग आकाश (अल्लाह )की तरफ था
'खर सुनते ही अली इब्ने अबू तालिब जो रसूल के दामाद और चचेरे भी थे आगये .उनहोंने देखा कि रसूल का बेजान जिस्म जमीन पर पडा है लेकिन उनका लिंग आसमान की तरफ खड़ा है .यह देखकर उमर खत्ताब ने रसूल के मरने से इंकार कर दिया .क्योंकि अली ने कहा था "يا أيها النبي القضيب خاصتك هو منتصب حتى السماء! "अंगरेजी में "O prophet thy penis erect unto sky "अबू दौउद -किताब 20 हदीस 3135
7 -विकी इस्लाम से इसके प्रमाण
In English, Ali ibn Abi Ṭalib, the fourth rightly guided Caliph of Islam (and also Muhammad's son-in-law and cousin) had exclaimed upon seeing Muhammad's lifeless corpse: "O prophet, thy penis is erect unto the sky!"
Unsurprisingly, this is one "miracle of Islam" that you will not find proudly displayed or posted in the many Islamic da‘wah (preaching) websites or forums.
Umar ibn al-Khattab, the second rightly guided Caliph of Islam, initially refused to believe Muhammad had died, and who could blame him when the prophet displayed such strong signs of life?
8 - मुहम्मद अपराधी था
मरने बाद इस तरह लिंग के खड़े रहने को "Death erection "या "angel lust "कहते है .यह उन्हीं के साथ होता है जो जघन्य अपराधी होते है ..इसके बारे में हिन्दी विकी पीडिया ने यह लिखा है-
मरणोत्तर स्तंभन (अंग्रेजी: Death Erection डेथ इरेक्शन), एक शैश्निक स्तंभन है और जिसे तकनीकी भाषा में प्रायापिज़्म कहते हैं, अक्सर उन पुरुषों के शव में देखने में आता है, जिनकी मृत्यु प्राणदंड, विशेष रूप से फांसी के कारण हुई हो।
9 -मुहम्मद का दफ़न
अब्दुलाह बिन अब्बास ने कहा कि रसूल को इसी दशा में नजरान के तीन कपड़ों में दफ़न कर दिया गया था .दो कपडे ऊपर के थे और एक नीचे तहमद थी अबू दौउद -किताब 20 हदीस 3147
अब हम कैसे मने कि मुहमद एक महा पुरुष या रसूल था .उसने अपने कुकर्मों का फल मरने बाद पा लिया .वह क़यामत तक इसी तरह अपना लिंग अल्लाह कि तरफ दिखाता रहेगा .
यदी किसी को शक हो तो वह गूगल में "muhammad and his eternal erection "सर्च करके देख लें



इस्लामी जानवरियत :जानवर कौन है ?

जो लोग किसी हिंसक और क्रूर व्यक्ति को जानवर कह देते हैं ,वे इस लेख को ध्यान से पढ़ें और फैसला करें कि असली जानवर कौन हैं .हमारा विश्वास है कि सारे प्राणी ईश्वर की स्रष्टी हैं .उन्हें भी जीने का अधिकार है .कुरआन में जानवरों के बारे में यह लिखा है -
1 -जानवर अल्लाह ने बनाए हैं ,वे समझदार होते है .
"क्या इन लोगों ने नहीं देखा कि हमने चौपाये बनाए जिन्हें हमारे हाथों ने बनाया है "सूरा -यासीन 36 :71
कुरआन की सूरतों के नाम प्राणियों के नाम पर है ,जैसे बकरा =ऊंट ,नम्ल=चींटी .नह्ल=मधुमखी ,अनकबूत =मकडी और फील =हाथी .यानी अल्लाह को इनके बारे ने ज्ञान था .अल्लाह को ज्ञात था कि जीवों में बुद्धि भी होती है .
2 -जानवर बुद्धिमान होते है
"हमने हुदहुद से कहा कि यह पात्र लेजा और डाल दे ,देखें कि वह लोग पत्र पढ़कर पढ़कर क्या जवाब देते हैं ".सूरा -नम्ल 27 :28
"हमने जानवरों को जमीन से निकाला ,जो लोगों से बात करेंगे ,ताकि लोग हमारी आयातों पर यकीन करें .सुरा-अम्ल 27 :82
3 -जानवर मूर्ख और अचेतन हैं .
"अल्लाह की नजर में सारे जीव गूंगे और बहरे है ,जो भूमि पर चलते हैं .वे अचेतन है .सूरा -अन्फाल 8 :22
"क्या तुम समझते हो कि यह जानवर सुनते हैं ,और महसूस करते हैं ,यह तो बस निरे पशु हैं .सूरा-अल फुरकान 25 :44
4 -जानवर खाने की चीज हैं -
"तुम्हारे लिए चौपाये की जाती के सारे जानवर हलाल कर दिए गए,तुम उन्हें खाओ .सूरा -मायदा 5 :1
"जिस जानवर पर भी अल्लाह का नाम लियागया हो ,उसे खाजाओ .सूरा -अन आम 6 :119
5 -हलाल -हराम क्या है
"तुम्हारे लिए मुरदार ,सूअर का मांस ,खून और जिस जानवर पर अल्लाह के अलावा किसी और का नाम लिया गया हो ,वे सब हराम ठहराए गए हैं .फिर कोई मजबूर हो जाए ,और उसकी खुद इच्छा नहीं हो तो कोई गुनाह नहीं .सूरा -बकरा 2 173
"हे ईमान वालो ,जिन जानवरों के गले में पट्टे पड़ जाये वे सब कुर्बानी के जानवर हैं .सूरा -मायदा 5 :1
"तुम पर मुरदार ,रक्त ,सूअर का मांस ,और जो जानवर दम घुटने से मरे ,या ऊपर से गिर जाए ,या जसे किसी हिंसक जानवर ने घायल करदिया हो ,तो उसे ज़िंदा रहते ही फ़ौरन जिबह करदो और खा लो .सूरा -मायदा 5 :3
"यदि तुम्हारे सधाए शिकारी जानवर किसी शिकार को पकड़ लें तो उसे पकडे रहो ,और अल्लाह का नाम लेकर खालो .सूरा मायदा 5 :4
6 -ऊंटों की कुरबानी का कारण
मुसलमान बकरों ,गायों ,और भेड़ों की कुरबानी को त्याग और बलिदान का प्रतीक बता कर असली बात छुपा देते है .वे बाइबिल कि चराई गयी एक कहानी बता देते है कि इब्राहीम ने अपने लडके का बलदान दिया था .लेकिन ऊंटों की कुरबानी का कारण लोगों को पता नहीं है .ऊंट की गर्दन नही काटी जाती है .उसे खड़ा करके उसकी गर्दन में भालेसे छेद कर दिया जाता है .जब वह खून बहाने से गिर जाता है तो उसे जिन्दा ही काट कर खा लिया जाता है .इस विधि को "नहरनहर कहा जता है.
ऊंट की कुर्बानी यानी नहर करने का तरीका काफी क्रूर और ह्रदयविदारक होता है .पहिले ऊंट को खडा कर के उसके गले में तेजदार हथियार से उसके गले की धमनी में छेड़ कर दिया जाता है .जब ऊंट खून बह जाने से कमजोर होकर नीचे गिर जता है ,तो उसे ज़िंदा रहते ही टुकड़ों में काट लिया जाता है .और खा लिया जाता है .मुहम्मद ने यह तरीका लोगों को डराने ,और इस्लाम की धाक जमाने के लिए बनाया था .देखिये -
"यह नजारा देख कर काफिरों के दिल थर्रा जायेंगे ,और वह कांप कर अलह को याद करेंगे "सूरा -अल हज 22 :35
फिर मुहम्मद ने तरीका भी बता दिया कि ऊंट की कुरबानी कैसे करें -
"हमने ऊंटों की कुरबानी के लिए यह तरीका ठहराया है कि ,पाहिले ऊंट खानेवाले (ऊंट कटाने तक )धीरज से बैठे रहें .फिर ऊंटों को अल्लाह का नाम लेकर एक पंक्ति में खडा कर दिया जाए .और अल्लाह का नाम लेकर नहर किया जाये .जब ऊंट जमीन पर किसी पहलू पर गिर जाएँ ,तो उन्हें कट कर खाओ और बैठे हुए लोगों को भी खिलाओ .यदि कुछ बचा रहे तो ,माँगने वालों को बाँट दो .इस तरह से हमने ऊंट को तुम्हारे काम में निपटाने का तरिका बता दिया.सूर -अल हज्ज 22 :36
7 -जानवरों के बारे में इस्लाम के विचार -
"जानवरों का खून अल्लाह को प्यारा है .इब्ने माजा -किताब 4 हदीस 3126
"जब जानवरों को मारो तो उनके खून में चप्पल डूबा लो .इब्ने माजा -किताब 4 हदीस 3105 और 3106
"जानवरों को मारते समय चाकू छुपा लो .इब्ने माजा -कित्ताब 4 हदीस 3172
"हर साल कुरबानी करना जरूरी है .इब्ने माजा -किताब 4 हदीस 3125
"कुर्बानी के जानवर को माला पहिनाओ .इब्ने माजा किताब 4 हदीस 3096
"जिबह से पहिले जानवर को खूब सताओ .इब्ने मजा -किताब 4 हदीस 3097
"कुर्बानी से पूर्व ऊंट की सवारी कर लो .इब्ने मजा -किताब 4 हदीस ३१०३और 3104
"अगर ऊंटनी गर्भिणी हो और नहर के समय उसका बच्चा गिर जाये ,तो मान के साथ बच्चे को जिबह कर दो .मुवात्ता -जिल्द 20 :43 /20
"अगर मादा जानवर का बच्चा दूध पीने वाला हो ,तो उसे दूध पीने के पाहिले जबह कर दो .मुवात्ता -जिल्द 20 किताब 43 हदीस 145
"कुरबानी के बाद जानवर कि माला उसी के खून में डूबा दो .मुवता जिल्द 24 किताब 45 हदीस 135 और 154
"अगर किसी ऊंटनी के पेट से साबुत बच्चा निकले ,जो जीवित हो तो उसे भी जिबह कर दो .मुवता जिल्द 24 किताब 4 हदीस 8 और 9
8 -इस्लाम के हैवानी कानून -
"अगर जानवर का मालिक जकात न दे तो ,उसके जानवरों को सजा दो .बुखारी जिल्द 2 किताब 24 हदीस 485 और 539
"अगर तुम जकात नहीं दोगे तो इसकी सजा ऊंटों को मिलेगी .मुस्लिम -किताब 5 हदीस 2126 और 2127
"अगर तुम जकात नहीं देते तो तुम्हारे जानवर थर्राते रहेंगे .इब्ने माजा -किताब 3 हदीस 1785 और 1786
8 -राक्षस मुहम्मद -
"रसूल ने कहा कि लकड़ बग्घे का गोश्त हलाल है.इब्ने माजा -किताब 4 हदीस 1785 और 1786
"घोड़े का मांस भी हलाल है .मुस्लिम -किताब 21 हदीस 4804

"रसूल ने छिपकली (chamaleon )का गोश्त खाया था .मुस्लिम -किताब 21 हदीस 4783 ,4784 और 4787
"रसूल ने कहा कि टिड्डियाँ खाना हलाल है .मुस्लिम -किताब 21 हदीस 4801 और इब्ने माजा -किताब -4 हदीस 3219 और 3220
9 -मुहमद की जानवर बुद्धि
"मुहम्मद ,उमर और अबूबकर गाय से बात करते थे .बुखारी -जिल्द 3 किताब 39 हदीस 514
"गाय और भेड़ियारसूल से बात करते थे .बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 677
"ऊंट नबी से बोला कि वह भूखा है .अबू दौउद -जिल्द 2 किताब 14 हदीस 2543
"मुहम्मद ,अबू बकर भेड़ियों भाषा समझ सकते थे .और उनसे बात करते थे .मुस्लिम -किताब 31 हदीस 5881
अब आपको पता चल गया होगा कि कुरबानी के पीछे त्याग और बलिदान की बात नहीं जानरों का खून बहाकर दहशत पैदा करना है .और बच्चों को जिहादी बनाना है .अगर मुसलमान अल्लाह के इतने आज्ञाकारी हैं ,तो अपने बच्चों कीकुर्बानी क्यों नहीं देते ?आपको यह भी पता चल गया होगा की असली जानवर तो मुसलमान हैं लोग जानवरों को बेकार बदनाम करते हैं .